विद्यापति की पदावली की भाषा

भूमिका

विद्यापति की पदावली की भाषा: हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन कवियों में विद्यापति का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। वे न केवल एक महान भक्त कवि थे, बल्कि एक भाषाविद् और साहित्यिक सौंदर्य के निर्माता भी थे। उनकी पदावली अर्थात पदों की भाषा विशेष रूप से अध्ययन और विमर्श का विषय है क्योंकि उसमें एक साथ कई भाषाई परंपराएँ, भावधाराएँ और सांस्कृतिक प्रभाव समाहित हैं।

विद्यापति का साहित्यिक परिचय

विद्यापति (1352–1448 ई.) मिथिला क्षेत्र के प्रमुख कवि थे। उनकी काव्य-रचनाएँ मुख्यतः भक्ति और शृंगार रस पर आधारित हैं। उनका भक्ति साहित्य राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला पर केंद्रित है, जबकि शृंगारिक पदों में अत्यंत कोमलता, भावुकता और लालित्य पाया जाता है।

पदावली की भाषा का स्वरूप

विद्यापति की पदावली की भाषा एक मिश्रित शैली है जिसमें मुख्यतः निम्नलिखित भाषाओं का संगम मिलता है:

1. मैथिली भाषा का प्रधान स्वरूप

विद्यापति ने मैथिली भाषा को साहित्यिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। उस समय मैथिली केवल जनभाषा थी, किंतु विद्यापति के प्रयासों से वह काव्य की भाषा बनी। उनकी पदावली में मैथिली का प्राकृतिक प्रवाह, भावनात्मक अभिव्यक्ति और स्थानीय शब्दों का प्रयोग मिलता है। जैसे:

“जय जय भैरवी असुर भयावनि।”

यह पद न केवल लोक भाषा का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि उसमें लयात्मकता और सांगीतिक गुण भी है।

2. संस्कृत शब्दावली और व्याकरणिक संरचना

विद्यापति संस्कृत के विद्वान थे। अतः उनके काव्य में संस्कृत के तत्सम शब्द, छंद-रचना, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग स्पष्ट दिखाई देता है। उदाहरणतः:

“कहब कि प्रेम दुख, सहब कि प्रेम सुख।”

यहाँ द्वंद्वात्मक शैली और ध्वनि सौंदर्य संस्कृत परंपरा की देन है।

3. देशज और लोकप्रचलित शब्द

विद्यापति की भाषा में कई ऐसे शब्द मिलते हैं जो सीधे लोकजीवन से लिए गए हैं — जैसे “धनि”, “जाइत छी”, “मोरा”, “तोरा” आदि। ये शब्द पदों में आत्मीयता, सहृदयता और स्थानीयता का भाव भरते हैं।

भाषिक विशेषताएँ

1. सहजता और संप्रेषणीयता

विद्यापति की भाषा में भावों की सहज अभिव्यक्ति मिलती है। वे गूढ़ दार्शनिक बातों को भी जनभाषा में सरलता से कह देते हैं।

2. ललितता और मधुरता

उनकी भाषा अत्यंत कोमल, मधुर और संगीतात्मक है। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ गाई जाती हैं, पढ़ी जाती हैं और अनुभव की जाती हैं।

3. भाव-प्रधान शब्द चयन

हर शब्द भावपूर्ण है। शब्दों का चयन इस तरह किया गया है कि वह श्रोता या पाठक के हृदय को स्पर्श कर सके।

विद्यापति की भाषा का ऐतिहासिक महत्व

1. मैथिली को साहित्यिक दर्जा देना

विद्यापति की काव्यभाषा ने मैथिली को पहली बार साहित्यिक मंच पर स्थापित किया। इसके बाद विद्यापति की भाषा को “वैद्यबानी” के नाम से जाना गया।

2. भक्ति आंदोलन को जनमानस से जोड़ना

उन्होंने भक्ति को संस्कृत के बंधन से मुक्त कर जनता तक पहुँचाया। उनकी भाषा वह पुल बनी जिसने कृष्ण-भक्ति को लोक तक पहुँचाया।

3. बंगाली और अवधी कवियों पर प्रभाव

विद्यापति की पदावली की भाषा ने बंगाली कवियों — चैतन्य महाप्रभु, गोविंददास — और अवधी कवियों — तुलसीदास आदि — को प्रेरित किया। उनकी भाषा ने पूर्वी भारत के भक्ति साहित्य को एक नई दिशा दी।

तुलनात्मक संदर्भ

यदि सूरदास की ब्रज भाषा, तुलसीदास की अवधी और मीरा की राजस्थानी शैली से तुलना करें, तो विद्यापति की मैथिली भाषा अधिक स्त्रीवाचक, आत्मीय और कोमल लगती है। वह भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए सबसे अधिक लचीली प्रतीत होती है।

निष्कर्ष

विद्यापति की पदावली की भाषा केवल एक भाषिक संरचना नहीं, बल्कि एक भावात्मक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा की अभिव्यक्ति है। यह भाषा उस समय के समाज, संस्कृति, और लोकजीवन का आइना भी है और भक्ति की उस लहर की वाहक भी है जिसने जनता के हृदय को छुआ।

विद्यापति की भाषा आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वह भावनाओं को, प्रेम को और भक्ति को उस रूप में व्यक्त करती है जो शाश्वत है — सरल, मधुर और आत्मीय।

FAQs

प्रश्न 1: विद्यापति की भाषा क्या थी?
उत्तर: विद्यापति की प्रमुख भाषा मैथिली थी जिसमें संस्कृत, देशज और लोकप्रचलित शब्दों का सुंदर समावेश था।

प्रश्न 2: विद्यापति की भाषा को “वैद्यबानी” क्यों कहा गया?
उत्तर: विद्यापति की विशिष्ट शैली और प्रयोग के कारण उनकी मैथिली भाषा को विद्वानों ने “वैद्यबानी” कहा, जो उनके नाम से प्रेरित था।

प्रश्न 3: विद्यापति की भाषा का भक्तिकाल पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: विद्यापति की भाषा ने भक्ति को जनमानस तक पहुँचाने में मदद की और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के कवियों को भी प्रेरित किया।

प्रश्न 4: क्या विद्यापति की रचनाओं में संस्कृत के तत्व मिलते हैं?
उत्तर: हाँ, विद्यापति संस्कृत के विद्वान थे और उनकी पदावली में संस्कृत शब्दों, छंदों और अलंकारों का भरपूर प्रयोग मिलता है।

प्रश्न 5: विद्यापति की भाषा में संगीतात्मकता क्यों है?
उत्तर: उनकी भाषा में लय, ताल और स्वर का मेल है जिससे पदावली गेय और भावपूर्ण बनती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top