सूरज का सातवाँ घोड़ा की पात्र योजना: धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ा हिन्दी साहित्य में एक अनूठा प्रयोग है, जहाँ लेखक ने पारंपरिक कहानी कहने के ढाँचे को तोड़ते हुए ‘कहानी में कहानी’ की शैली अपनाई है। इसमें पात्रों का गठन न केवल उपन्यास को जीवन्त बनाता है, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विमर्श को भी मुखर रूप देता है। इस लेख में हम इस उपन्यास की पात्र योजना पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
कहानी कहने वाला पात्र: माणिक मुल्ला
स्वरूप और भूमिका
माणिक मुल्ला इस उपन्यास का केंद्रीय पात्र है, जो कहानी कहने वाला भी है और श्रोता पात्रों के मध्य विचारक की भूमिका में भी नजर आता है। वह तीन प्रेम कहानियाँ सुनाता है – रजनी, जमुना और लिली की। माणिक मुल्ला का चरित्र एक दार्शनिक, बौद्धिक और भावनात्मक दृष्टा का है, जो जीवन को केवल रोमांस तक सीमित नहीं मानता, बल्कि उससे जुड़े हुए सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भों को भी उजागर करता है।
चरित्र की विशेषताएँ
- व्यंग्यात्मक शैली में संवाद
- प्रतीकात्मकता का प्रयोग
- कहानी को बहुपरतीय दृष्टिकोण से देखने की दृष्टि
सूरज का सातवाँ घोड़ा: प्रमुख महिला पात्रों का मनोविश्लेषण
1. रजनी
चरित्र चित्रण
रजनी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की है, जिसकी भावनात्मकता और स्वाभिमान कथा में मुखर हैं। उसका पात्र भारतीय समाज में नारी की पारंपरिक छवि को चुनौती देता है।
मूल्यांकन
- सामाजिक असमानता की प्रतीक
- प्रेम में त्याग और स्वाभिमान का समन्वय
- वर्गभेद के विरुद्ध प्रतिरोध की छाया
2. जमुना
चरित्र स्वरूप
जमुना का पात्र जीवन के यथार्थ से टकराती स्त्री का प्रतिनिधित्व करता है। वह सुंदर नहीं है, लेकिन उसमें आत्मबल और आत्मसम्मान प्रचुर मात्रा में है।
प्रतीकात्मकता
जमुना का पात्र उन स्त्रियों की प्रतिनिधि है, जो सुंदरता की पारंपरिक परिभाषा को नकारती हैं और आत्मसम्मान के बल पर समाज में स्थान बनाती हैं।
3. लिली
वर्णन
लिली का पात्र समाज के उच्च वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। वह स्वतंत्र है, आत्मविश्वासी है और जीवन को अपने शर्तों पर जीना चाहती है।
मूल्यांकन
- आधुनिकता की प्रतीक
- उपभोक्तावादी मानसिकता की झलक
- पुरुषों के साथ समानता की चाह
मूल्यवत्ता और प्रतीक योजना
‘सातवाँ घोड़ा’ का प्रतीक
यह शीर्षक प्रतीकात्मक है। भारतीय पुराणों में सूर्य के रथ को सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है, जो सप्ताह के सात दिनों और जीवन के सात चरणों के प्रतीक हैं। ‘सातवाँ घोड़ा’ वह है जो सबसे पीछे है, जो जीवन के असहज, उपेक्षित और अनकहे पक्षों को खींचता है – वही इस उपन्यास का केंद्रीय विचार है।
अन्य पात्र और उनका महत्व
श्रोता पात्र
माणिक मुल्ला की कहानियों को सुनने वाले मित्रगण केवल निष्क्रिय श्रोता नहीं, बल्कि विचार-संवाद के भागीदार भी हैं। वे सामाजिक दृष्टिकोणों, नैतिकताओं और वैयक्तिक अनुभवों को साझा करते हैं, जिससे उपन्यास बहुस्तरीय बन जाता है।
पुरुष पात्र – दीपक, रमेश, आदि
इन पात्रों के माध्यम से भारती यह दिखाते हैं कि पुरुषों की भावनाएँ भी जटिल होती हैं। उनके रिश्ते, निर्णय और कमजोरियाँ कथा को गहराई प्रदान करती हैं।
पात्र योजना की विशेषताएँ
- यथार्थवाद और प्रतीकात्मकता का संतुलन
- नारी पात्रों की आत्मनिर्भरता और संघर्ष
- कथात्मक प्रयोगधर्मिता में पात्रों की भूमिकाएँ
- दर्शन और समाजशास्त्र का समावेश
निष्कर्ष
सूरज का सातवाँ घोड़ा केवल एक प्रेम-कथा नहीं, बल्कि भारतीय समाज के भीतर चल रही सामाजिक-सांस्कृतिक उथल-पुथल की पड़ताल है। इसकी पात्र योजना गूढ़, संवेदनशील और बहुआयामी है, जो पाठक को आत्मविश्लेषण की ओर ले जाती है। माणिक मुल्ला, रजनी, जमुना और लिली जैसे पात्र न केवल कथा को दिशा देते हैं, बल्कि पाठक के भीतर सामाजिक चेतना को भी जाग्रत करते हैं।
FAQs: सूरज का सातवाँ घोड़ा की पात्र योजना
Q1. ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ में माणिक मुल्ला का क्या महत्व है?
माणिक मुल्ला कथा-नायक और सूत्रधार हैं जो तीन प्रेम कहानियों के माध्यम से जीवन के बहुस्तरीय यथार्थ को उजागर करते हैं।
Q2. उपन्यास की महिला पात्रों में क्या साम्यता है?
तीनों महिला पात्र आत्मसम्मान, संघर्षशीलता और सामाजिक बाधाओं से टकराने की क्षमता रखती हैं।
Q3. सातवाँ घोड़ा किसका प्रतीक है?
यह जीवन के अंतिम, छूटे हुए, उपेक्षित पक्षों का प्रतीक है जो सबसे पीछे रह जाता है लेकिन वास्तविकता की धुरी वही है।
Q4. क्या यह उपन्यास नारीवाद को समर्थन देता है?
हाँ, यह उपन्यास स्त्री पात्रों के माध्यम से स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति करता है।
Q5. क्या यह केवल प्रेमकथाओं का संग्रह है?
नहीं, इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक विमर्श भी शामिल हैं।
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