संरचनावाद (Structuralism)

1.क्या है संरचनावाद (Structuralism)?

संरचनावाद (Structuralism) बीसवीं शताब्दी के मध्य में एक प्रमुख बौद्धिक आंदोलन के रूप में उभरा। यह भाषा, संस्कृति, साहित्य, मनोविज्ञान और मानवशास्त्र जैसी विभिन्न शाखाओं में संरचनाओं के अध्ययन पर केंद्रित है। इसका मूल विचार यह है कि किसी भी विचार या रचना को समझने के लिए हमें उसकी भीतरी संरचना का विश्लेषण करना चाहिए, न कि केवल उसके बाहरी अर्थों तक सीमित रहना चाहिए।


2. संरचनावाद की उत्पत्ति और विकास

संरचनावाद की नींव स्विस भाषाविद् फर्डिनान्द डे सॉस्यर (Ferdinand de Saussure) के भाषा-सिद्धांतों पर टिकी है। उन्होंने भाषा को संकेतक (Signifier) और संकेतार्थ (Signified) के संयोजन के रूप में देखा। इसके बाद क्लॉद लेवी-स्ट्रॉस ने मानवविज्ञान में संरचनावादी दृष्टिकोण अपनाया।

यूरोप में यह आंदोलन 1950 और 1960 के दशकों में अपने चरम पर पहुंचा, जब रोलां बार्थ, मिशेल फूको, जूलिया क्रिस्तेवा जैसे विचारकों ने इसे साहित्य और समाज के गहरे विश्लेषण का उपकरण बनाया।


3. संरचनावाद के प्रमुख सिद्धांत

(क) भाषा का संरचनात्मक स्वरूप

संरचनावादियों का मानना है कि भाषा अपने आप में अर्थ को निर्धारित नहीं करती, बल्कि अर्थ तब उत्पन्न होता है जब विभिन्न संकेत आपस में भिन्न होते हैं। इस सिद्धांत ने साहित्यिक आलोचना में यह विचार प्रस्थापित किया कि रचना का अर्थ लेखक की मंशा से स्वतंत्र होता है।

(ख) संरचना बनाम विषयवस्तु

संरचनावादी आलोचना में यह विचार महत्वपूर्ण है कि रचना की संरचना (जैसे कथानक, पात्र, प्रतीक, रूपक आदि) उसकी विषयवस्तु से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। साहित्य को ‘पाठ’ के रूप में देखा जाता है जिसे विभिन्न स्तरों पर पढ़ा और विश्लेषित किया जा सकता है।

(ग) पाठ की आत्मनिर्भरता

संरचनावाद यह मानता है कि किसी साहित्यिक रचना को समझने के लिए लेखक, सामाजिक पृष्ठभूमि या ऐतिहासिक संदर्भ की आवश्यकता नहीं है। रचना अपने आप में पूर्ण होती है और उसका अर्थ उसी के भीतर से निकाला जाना चाहिए।


4. हिंदी साहित्य में संरचनावाद का प्रभाव

हिंदी साहित्य में संरचनावाद की गूंज 1970 के बाद सुनाई देने लगी। नामवर सिंह, गणेश देवि, अशोक वाजपेयी, मैनेजर पांडेय आदि ने संरचनावादी विचारों के प्रभाव में साहित्यिक आलोचना के नए दृष्टिकोण अपनाए।

विशेष रूप से मुक्तिबोध, अज्ञेय, और नयी कविता के पाठ विश्लेषण में संरचनावाद की तकनीकों को अपनाया गया। यह एक ऐसा काल था जब आलोचना केवल वैचारिक विश्लेषण न रहकर एक विधिशास्त्र बन गई थी।


5. संरचनावादी आलोचना के लाभ

  • गहराई से विश्लेषण: संरचनावाद रचनाओं को गहराई से पढ़ने और उसमें छिपी संरचनात्मक रणनीतियों को समझने का अवसर देता है।
  • पाठ की आत्मनिर्भरता: यह पाठ के महत्व को स्वीकार करता है और लेखक-पूजा से मुक्ति दिलाता है।
  • विज्ञान-सुलभ दृष्टिकोण: इसकी पद्धतियां वैज्ञानिक और तर्कसंगत होती हैं, जिससे आलोचना में वस्तुनिष्ठता आती है।

6. आलोचना और सीमाएं

जहां संरचनावाद ने साहित्यिक आलोचना को एक वैज्ञानिक और विधिशास्त्रीय दिशा दी, वहीं इसकी आलोचना भी हुई:

  • अत्यधिक वस्तुनिष्ठता: इसने पाठ को मानव अनुभव से काटकर केवल संरचना तक सीमित कर दिया।
  • मानव कारक की उपेक्षा: लेखक, पाठक और सामाजिक संदर्भ की भूमिका को नजरअंदाज किया गया।
  • स्थायित्व का भ्रम: संरचनावादी मानते हैं कि अर्थ निश्चित होता है, जबकि उत्तरसंरचनावाद ने यह मान्यता खारिज की।

7. उत्तरसंरचनावाद की ओर झुकाव

1980 के दशक में जैक्स डेरीदा और अन्य विचारकों ने संरचनावाद की स्थायित्व-प्रधान अवधारणा को चुनौती दी। उत्तरसंरचनावाद ने अर्थ को अस्थिर, बहुव्याख्यात्मक और पाठक-निर्भर बताया।

फिर भी, संरचनावाद ने आलोचना को जिस वैचारिक गंभीरता और पद्धतिगत स्पष्टता के साथ जोड़ा, उसका मूल्य आज भी अक्षुण्ण है।


8. निष्कर्ष: क्यों आज भी प्रासंगिक है संरचनावाद

संरचनावाद केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक दृष्टि है जो हमें भाषा, साहित्य और संस्कृति को नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करता है। समकालीन साहित्यिक विमर्शों — जैसे लिंग विमर्श, दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य — में संरचनावादी उपकरणों का प्रयोग हो रहा है।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज भी जब हम किसी रचना की गहराई में जाना चाहते हैं, तो संरचनावाद की पद्धति हमें एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित मार्ग प्रदान करती है।

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FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. संरचनावाद क्या है?
संरचनावाद एक बौद्धिक आंदोलन है जो रचनाओं की भीतरी संरचना के अध्ययन पर बल देता है।

Q2. हिंदी साहित्य में संरचनावाद कब आया?
1970 के दशक में हिंदी आलोचना में संरचनावाद का प्रवेश हुआ, विशेष रूप से नामवर सिंह और अन्य विचारकों के माध्यम से।

Q3. संरचनावाद और उत्तरसंरचनावाद में क्या अंतर है?
संरचनावाद अर्थ की स्थायित्व में विश्वास करता है, जबकि उत्तरसंरचनावाद अर्थ को बहुव्याख्यात्मक और अस्थिर मानता है।

Q4. क्या संरचनावाद आज भी प्रासंगिक है?
हाँ, संरचनावादी पद्धतियां आज भी साहित्यिक विश्लेषण में प्रयुक्त होती हैं, खासकर गहन पाठ-पठन में।

 

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