रस के भेद बताते हुए श्रृंगार रस का विवेचन कीजिए ।

रस के भेद: भारतीय काव्यशास्त्र में रस को काव्य की आत्मा माना गया है। भरतमुनि के अनुसार, काव्य का उद्देश्य रस निष्पत्ति है – अर्थात् ऐसा भावात्मक आनंद उत्पन्न करना, जो सामान्य न होकर शुद्ध, सौंदर्यात्मक और अलौकिक हो। रस वह भाव है, जिसकी अनुभूति से सहृदय रसिक को आनंद प्राप्त होता है।

भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में रसों का प्रतिपादन करते हुए कहा –
“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः”

अर्थात् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के योग से रस की निष्पत्ति होती है।

रस के भेद (प्रकार)

प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र में रसों की संख्या पहले 8 मानी गई, फिर 9वीं शताब्दी में शांत रस को जोड़कर यह 9 हो गई। आधुनिक विद्वानों ने इसके आगे भयानक, भक्ति, वात्सल्य आदि की भी चर्चा की है, किंतु परंपरागत रूप में 9 रस प्रमुख माने जाते हैं:

रसस्थायी भावदेवतारंग
शृंगाररति (प्रेम)विष्णुश्याम
हास्यहास (हँसी)प्रपंचश्वेत
करुणशोकयमधूम्र
रौद्रक्रोधरुद्रलाल
वीरउत्साहइन्द्रगौरा
भयानकभयकालकृष्ण
वीभत्सजुगुप्साशिवनीला
अद्भुतआश्चर्यब्रह्मापीत
शांतनिर्वेद (वैराग्य)बुद्धशुक्ल

शृंगार रस का विवेचन

शृंगार रस को रसों का राजा कहा गया है, क्योंकि यह सबसे मधुर, व्यापक और हृदयस्पर्शी रस है। इसकी अनुभूति प्रेम, सौंदर्य, कोमल भावनाओं और मनोभावों की अभिव्यक्ति से होती है।

स्थायी भाव

  • रति (प्रेम, आकर्षण, अनुराग) – यह इसकी मूल भावना है।

विभाव

  • उद्दीपन विभाव: चंद्रमा, वन, पुष्प, गीत, ऋतु, रूप आदि
  • आलंबन विभाव: नायक और नायिका

अनुभाव

  • दृष्टि, स्मित, लज्जा, रोमांच, अश्रु, कंपन आदि

व्यभिचारी भाव

  • चंचलता, हर्ष, उत्कंठा, लज्जा, ग्लानि, आशंका आदि

शृंगार रस के भेद

शृंगार रस के दो भेद माने गए हैं:

1. संयोग शृंगार

  • इसमें नायक-नायिका का मिलन, प्रेमालाप, प्रणय, हास्य, हास्यक्रीड़ा आदि दृश्य आते हैं।
  • यह रस सौंदर्य, यौवन और आकर्षण का पूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है।

उदाहरण:

“शरद निशा ज्यों मधुप गुञ्जार,
नवल प्रेम सरस भयो संसार।”

2. वियोग शृंगार

  • इसमें प्रिय का वियोग, विरह, पीड़ा, तड़प, स्मृति आदि भाव व्यक्त होते हैं।
  • यह रस करुणा और अनुराग के मिलन से उत्पन्न होता है।

उदाहरण:

“सुनि वियोग वाक्य बिचारी,
बिबस भई बैदेही प्यारी।”

– तुलसीदास, रामचरितमानस

शृंगार रस के प्रमुख उदाहरण

काव्यशास्त्र, संस्कृत काव्य और भक्ति काव्य में शृंगार रस के अद्भुत प्रयोग मिलते हैं:

  • कालिदास के ‘मेघदूत’ में यक्ष-प्रिया का विरह चित्रण।
  • जयदेव के ‘गीतगोविंद’ में राधा-कृष्ण के संयोग-वियोग।
  • विद्यापति और बिहारी की रचनाएँ शृंगार रस की पराकाष्ठा हैं।
  • हिंदी में घनानंद और बिहारी ने शृंगार रस को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया।

विशेषताएँ

  • यह रस केवल शारीरिक प्रेम तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मिक और सौंदर्यात्मक भावनाओं की अभिव्यक्ति है।
  • भक्तिकाल में शृंगार रस आध्यात्मिक रूप लेता है, जैसे राधा-कृष्ण का प्रेम।

उपसंहार: रस के भेद बताते हुए श्रृंगार रस का विवेचन कीजिए ।

शृंगार रस मानवीय संवेदना का सर्वाधिक कोमल और सुंदर पक्ष है। यह रस मनुष्य को सौंदर्य, प्रेम, अनुराग और आत्मिक अनुभूति की ओर ले जाता है। रसों की परंपरा में यह रस केवल लौकिक न होकर अलौकिक अनुभूति भी कराता है। काव्य की रसात्मकता तब पूर्ण होती है जब शृंगार रस का संयोजन प्रभावी रूप से किया गया हो।

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