रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य

भूमिका

रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य: हिंदी साहित्य का इतिहास केवल काव्य सौंदर्य का दस्तावेज नहीं, बल्कि जीवन के विविध अनुभवों और मूल्यों का संग्रह भी है। अब्दुर्रहीम खानखाना, जिन्हें हम संक्षेप में रहीम कहते हैं, न केवल मुगल दरबार के नवरत्न थे, बल्कि एक ऐसे कवि थे जिनके दोहे जीवन-दर्शन के प्रतीक बन गए। रहीम के दोहे समय, स्थान और परिस्थितियों से परे हैं—वे मानवता, प्रेम, नीति और भक्ति जैसे सार्वभौमिक मूल्यों का संदेश देते हैं।

1. रहीम का जीवन और रचनात्मक पृष्ठभूमि

रहीम का जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर में हुआ। वे बाबर के पोते और अकबर के दरबारी रहे। उनके पिता बैरम खाँ अकबर के संरक्षक थे। रहीम ने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी और हिंदी का गहरा अध्ययन किया।

  • दार्शनिक पृष्ठभूमि – सूफ़ी विचारधारा और भक्तिकाल की आध्यात्मिक धारा का प्रभाव।
  • राजनीतिक अनुभव – युद्ध, कूटनीति और शासन में सक्रिय भागीदारी, जिसने उन्हें जीवन की वास्तविकताओं से जोड़ा।
  • सांस्कृतिक विविधता – दरबार में हिंदू-मुस्लिम विद्वानों की उपस्थिति, जिसने उनके विचारों को उदार और सहिष्णु बनाया।

2. रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य – मुख्य विषय

(क) नीति और जीवन-दर्शन

रहीम का सबसे प्रमुख प्रतिपाद्य नीति और सदाचार है। उनके नीति-दोहों में व्यावहारिक जीवन के लिए आवश्यक मार्गदर्शन है।

  • सत्य की महिमा – असत्य पर विजय अंततः सत्य की ही होती है।
  • संयम और धैर्य – कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखना।
  • अहंकार त्याग – सफलता मिलने पर विनम्र रहना।

उदाहरण:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय॥”

भावार्थ – रिश्तों में विश्वास और सावधानी जरूरी है, एक बार टूटे संबंध पूरी तरह पहले जैसे नहीं होते।

(ख) भक्ति और ईश्वर-निष्ठा

रहीम के दोहों में भक्ति-रस की भी प्रधानता है।

  • निष्काम भक्ति – स्वार्थरहित ईश्वर आराधना।
  • सर्वव्यापक ईश्वर – ईश्वर का वास हर जीव में है।
  • भक्ति और नीति का संगम – आध्यात्मिकता को व्यवहारिकता से जोड़ना।

उदाहरण:
“रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करे तलवारि॥”

भावार्थ – ईश्वर की योजना में हर छोटा-बड़ा महत्व रखता है, इसलिए किसी को तुच्छ न समझें।

(ग) प्रेम और मानवीय संबंध

रहीम का प्रेम दृष्टिकोण सात्त्विक और स्थिर है।

  • विश्वास का महत्व – प्रेम बिना विश्वास अधूरा है।
  • मर्यादित प्रणय – रीतिकालीन चमत्कारिता से दूर, पवित्र और संयत भाव।
  • संबंधों में सहनशीलता – छोटी-छोटी बातों पर संबंध न बिगाड़ें।

उदाहरण:
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥”

भावार्थ – सम्मान और मर्यादा जीवन का जल है; इसके बिना कोई मूल्य जीवित नहीं रह सकता।

(घ) दान और विनम्रता

रहीम का दान दर्शन अद्वितीय है।

  • दान में विनम्रता – दान का उद्देश्य दिखावा नहीं, लोकमंगल होना चाहिए।
  • आत्म-संतोष – दान देने वाले को आभार की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

उदाहरण:
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।”
यहाँ उन्होंने यह संकेत दिया कि बड़े लोग भी छोटे साधनों का उपयोग करते हैं, इसलिए अहंकार नहीं करना चाहिए।

(ङ) सहिष्णुता और लोकमंगल

रहीम का प्रतिपाद्य जाति, धर्म और भाषा की सीमाओं से परे है।

  • सर्वधर्म समभाव – सभी धर्मों का सम्मान।
  • मानवता सर्वोपरि – मनुष्य का धर्म है, दूसरों की भलाई करना।
  • शांति और एकता – समाज में मेल-जोल और सामंजस्य।

3. रहीम के दोहों की विशेषताएँ

  1. संक्षिप्तता में गहनता
    रहीम के दोहे केवल दो पंक्तियों के होते हैं, लेकिन उनका अर्थ गहरा और व्यापक होता है।
  2. लोकभाषा का प्रयोग
    ब्रजभाषा और साधारण शब्दावली का प्रयोग, जिससे उनका संदेश हर वर्ग तक पहुँचा।
  3. प्रकृति और लोकजीवन के प्रतीक
    मोती, पानी, तलवार, सुई—ये सभी प्रतीक साधारण जीवन से लिए गए, जिससे संदेश सीधा दिल तक पहुँचे।
  4. सार्वभौमिक संदेश
    उनके दोहे समय और संस्कृति की सीमाओं से परे हैं; आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
  5. रस और भाव का संतुलन
    नीति में गंभीरता, भक्ति में माधुर्य और प्रेम में कोमलता का सुंदर मिश्रण।

4. रहीम का प्रतिपाद्य और आधुनिक संदर्भ

आज की बदलती दुनिया में रहीम का संदेश और भी आवश्यक है—

  • संबंधों में धैर्य और सम्मान – सोशल मीडिया के दौर में तुरंत प्रतिक्रिया के बजाय सोच-समझकर बोलना।
  • धार्मिक सहिष्णुता – कट्टरता की बजाय सद्भाव बनाए रखना।
  • विनम्रता और सेवा – सफलता मिलने पर भी जमीन से जुड़े रहना।

5. निष्कर्ष

रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य केवल नैतिक शिक्षा का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक है। इसमें भक्ति, नीति, प्रेम, दान और मानवता का ऐसा संगम है, जो आज भी उतना ही उपयोगी और प्रेरणादायक है। रहीम ने अपनी सरल भाषा और गहन अर्थवत्ता से हमें यह सिखाया कि साहित्य तभी अमर होता है, जब वह जीवन से जुड़ा हो

FAQs: रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य

Q1. रहीम के दोहों का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है?
नीति, भक्ति, प्रेम, विनम्रता और मानवता।

Q2. रहीम किस रस के कवि हैं?
मुख्यतः नीति रस, किंतु भक्ति और श्रृंगार के सात्त्विक रूप भी हैं।

Q3. रहीम के दोहे आज क्यों पढ़े जाते हैं?
क्योंकि इनमें सार्वभौमिक और शाश्वत जीवन-दर्शन है।

Q4. रहीम की भाषा शैली कैसी है?
सरल, ललित और ब्रजभाषा-प्रधान।

Q5. परीक्षा में रहीम के दोहे कैसे याद रखें?
मुख्य दोहों को भावार्थ सहित अभ्यास करें और उनके विषय के आधार पर समूहबद्ध करें।

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