किसान जीवन के महाकाव्य के रूप में गोदान की समीक्षा: प्रेमचंद का ‘गोदान’ हिंदी उपन्यास साहित्य की वह उत्कृष्ट कृति है जिसे न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अमर रचना माना गया है। जब हम इसे “किसान जीवन का महाकाव्य” कहते हैं, तो यह मात्र अलंकारिक विशेषण नहीं है, बल्कि इसके विषय-वस्तु, शिल्प और पात्रों की यथार्थपरकता का प्रमाण है।
इस उपन्यास में कृषक वर्ग की व्यथा, सामाजिक जटिलता, आर्थिक गुलामी और आत्मसम्मान की गाथा इतने सजीव रूप में चित्रित की गई है कि यह भारतीय समाज की आत्मा का दस्तावेज़ बन जाती है।
2. गोदान: शीर्षक की गहराई और प्रतीकात्मकता
“गोदान” नाम का चयन ही इस उपन्यास की गूढ़ता और बहुस्तरीय अर्थवत्ता को दर्शाता है। भारतीय धार्मिक परंपरा में गोदान — मृत्यु से पहले गाय का दान — मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन उपन्यास में यह एक किसान के स्वप्न, आत्म-सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है।
होरी, जो इस उपन्यास का केंद्रीय पात्र है, पूरी ज़िंदगी एक गाय के स्वप्न में बिता देता है — लेकिन अंततः उसके पास गोदान करने के लिए गाय नहीं होती। यह आशा और विफलता का अद्वितीय यथार्थ है।
3. होरी: किसान जीवन का प्रतीक पुरुष
3.1 संघर्ष और आत्मत्याग का स्वरूप
होरी एक ऐसा पात्र है जो कृषक जीवन की त्रासदी और सांस्कृतिक जटिलताओं का प्रतिनिधि है। वह मेहनती, ईमानदार और धार्मिक व्यक्ति है। उसका अपराध केवल इतना है कि वह अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन चाहता है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक शोषण की चक्की में पिसता चला जाता है।
“गोदान” का नायक नायकत्व नहीं चाहता, वह केवल जीवित रहना चाहता है — स्वाभिमान के साथ।
3.2 कर्ज़, धर्म और सामाजिक रूढ़ियाँ
- वह गाय के लिए कर्ज़ लेता है, ताकि धर्म की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जा सके।
- वह सामाजिक मर्यादा में इतना बँधा होता है कि झुनिया को पत्नी जैसा स्वीकार करने के बावजूद समाज के सामने उसका विरोध नहीं कर पाता।
- अंततः उसकी मौत उम्मीद, परंपरा और व्यवस्था की विफलता पर एक तीखा व्यंग्य बन जाती है।
4. स्त्री पात्रों की भूमिका: नारी शक्ति और विवेक
4.1 धनिया — ग्रामीण स्त्री की सशक्त छवि
धनिया को उपन्यास में केवल पत्नी या सहचर नहीं बल्कि विवेक की आवाज़, आत्म-सम्मान की प्रतीक और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध बोलने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है।
वह:
- झुनिया को समाज से बचाती है,
- होरी के निर्णयों का विरोध करने से नहीं कतराती,
- और अन्याय के सामने खड़ी होती है।
4.2 झुनिया, सिलिया, सोना: निम्नवर्गीय नारी जीवन की त्रासदी
इन स्त्रियों के माध्यम से प्रेमचंद ने दलित और निम्नवर्गीय नारी जीवन की विडंबनाओं को सशक्त स्वर में रखा है। इन पात्रों का शोषण सामाजिक ढांचे की क्रूरता को उजागर करता है।
5. सामाजिक यथार्थ और वर्ग संघर्ष
5.1 ज़मींदार और महाजन की सत्ता
गोदान में गाँव के ज़मींदार, महाजन और ब्राह्मण वर्ग का जो स्वरूप उभरता है, वह सिर्फ शोषक नहीं, बल्कि व्यवस्था का हिस्सा बन चुका है। किसानों का शोषण आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर भी होता है।
5.2 पंचायत और धर्म के नाम पर अन्याय
उपन्यास में पंचायत जैसे संस्थानों की न्यायहीनता, धर्म के नाम पर दंड और सामाजिक मर्यादा के नाम पर उत्पीड़न दिखाता है कि कैसे किसान के पास संविधान नहीं, परंपरा ही अंतिम न्याय है।
6. शहरी बनाम ग्रामीण दृष्टिकोण
6.1 शहरी पात्र और आधुनिकता की खोखलापन
- रायसाहब, मिस मालती, मिर्जा खुर्शीद जैसे पात्र शहरी संस्कृति, आधुनिकता, बुद्धिवाद और अवसरवाद के प्रतीक हैं।
- ये पात्र विपरीत ध्रुव पर खड़े हैं — भावशून्य, लाभ केंद्रित और नैतिक मूल्यहीन।
प्रेमचंद इन दोनों वर्गों की तुलना करते हैं, परंतु अंततः ग्रामीण जीवन को ही अधिक मानवीय और सारगर्भित सिद्ध करते हैं।
7. भाषा और शिल्प: एक जीवंत दस्तावेज़
गोदान की भाषा सरल, ग्रामीण और लोकजीवन से जुड़ी हुई है। इसमें अवधी, खड़ी बोली और हिंदी का सम्मिश्रण है जो पात्रों को स्वाभाविक बनाता है।
- मुहावरेदार भाषा: संवादों में प्रांजलता है।
- वर्णनात्मक शैली: खेत, घर, पंचायत — सभी दृश्य इतने जीवंत हैं कि पाठक स्वयं उनमें खो जाता है।
- गहराई से संवाद: हर संवाद केवल बात नहीं, विचार भी प्रस्तुत करता है।
8. गोदान की समकालीन प्रासंगिकता
8.1 आज भी होरी जीवित है
- आज भी किसान कर्ज़ के बोझ से आत्महत्या करते हैं।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की लड़ाई, सिंचाई और बिजली की समस्याएं, बाजार की असमानता — सब गोदान की ही गूँज हैं।
- इस उपन्यास की संवेदनाएँ आज भी समाचारों में प्रतिबिंबित होती हैं।
यही कारण है कि गोदान केवल एक ऐतिहासिक कृति नहीं, बल्कि वर्तमान का भी आईना है।
9. निष्कर्ष: क्यों है गोदान किसान जीवन का महाकाव्य
गुण | विवरण |
---|---|
प्रतीकात्मकता | गोदान एक सांस्कृतिक और आत्मिक प्रतीक है |
नायक | होरी: संघर्षशील, सहनशील, नैतिक व्यक्ति |
नारी शक्ति | धनिया: विवेक और शक्ति की प्रतीक |
यथार्थ चित्रण | शोषण, व्यवस्था, जाति, वर्ग संघर्ष |
भाषा और शैली | सहज, लोकभाषा, मुहावरेदार |
समकालीनता | आज भी उपन्यास प्रासंगिक है |
‘गोदान’ एक यथार्थवादी रचना है जो न केवल साहित्यिक मूल्य रखती है बल्कि सामाजिक दस्तावेज़ भी है।
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FAQs: किसान जीवन के महाकाव्य के रूप में गोदान की समीक्षा
Q1: गोदान को किसान जीवन का महाकाव्य क्यों कहा जाता है?
Ans: क्योंकि इसमें एक किसान की संपूर्ण जीवन यात्रा — संघर्ष, परंपरा, धर्म, सामाजिक व्यवस्था और असफलताएँ — महाकाव्यीय स्वरूप में चित्रित हैं।
Q2: गोदान का मुख्य पात्र कौन है और उसका क्या महत्व है?
Ans: होरी, एक ईमानदार किसान जो व्यवस्था और धर्म के नाम पर शोषण का शिकार होता है; वह हर भारतीय किसान का प्रतिनिधि है।
Q3: क्या गोदान आज भी प्रासंगिक है?
Ans: पूरी तरह। आज के किसान जीवन की समस्याएं — जैसे कर्ज़, आत्महत्या, बाज़ार व्यवस्था — उपन्यास के यथार्थ को आज भी सजीव बनाती हैं।
Q4: गोदान में स्त्रियों की क्या भूमिका है?
Ans: स्त्रियाँ जैसे धनिया, झुनिया आदि केवल सहायक नहीं, बल्कि संघर्षशील और विवेकशील छवियाँ हैं जो सामाजिक विरोध का नेतृत्व करती हैं।