केशवदास रचित रामचन्द्रिका का भाव सौन्दर्य

भूमिका

रामचन्द्रिका का भाव सौन्दर्य: हिंदी साहित्य में रीतिकाल को मुख्यतः श्रृंगार-प्रधान काव्य का युग माना जाता है, किंतु इसी काल में कुछ कवियों ने भक्ति, नीति और लोकमंगल की भावधारा को भी उतनी ही प्रखरता से अभिव्यक्त किया। ऐसे ही रचनाकारों में कविवर केशवदास का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। केशवदास ने अपने काव्य में जहाँ रीतिकालीन अलंकार-शैली और सौन्दर्य-चेतना का प्रयोग किया, वहीं उसे भक्ति, नीति और आदर्श चरित्रों की भावभूमि से जोड़कर एक अनूठा समन्वय भी स्थापित किया। उनकी ‘रामचन्द्रिका’ इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।

रामचन्द्रिका का भाव सौन्दर्य

1. भक्ति-रस की भाव-गंगोत्री

‘रामचन्द्रिका’ का मूल स्वर भक्ति-प्रधान है। श्रीराम को कवि ने मर्यादा-पुरुषोत्तम, धर्म-पालक और लोकमंगल के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया।

  • दास्य-भाव : हनुमान-चरित में निष्काम सेवा और पूर्ण समर्पण का भाव अत्यंत मार्मिक है।
  • शरणागति-भाव : भक्त अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास रखता है और सभी दुःखों से मुक्त होने का साधन उसी को मानता है।
  • मंगलभावना : रामकथा में बार-बार यह भावना उभरती है कि भगवान के चरित्र और आचरण का अनुसरण करने से लोक का कल्याण होता है।

भक्ति-रस का यह प्रवाह पूरी रचना में शांति और पवित्रता का वातावरण निर्मित करता है।

2. वीर-रस का तेजोमय रूप

‘रामचन्द्रिका’ में युद्ध और संघर्ष के प्रसंग अत्यंत जीवंत एवं प्रेरक हैं।

  • राम-रावण युद्ध : इसमें राम के शौर्य, नीति और धैर्य का संयमित चित्रण है।
  • सुग्रीव-बालि युद्ध : नीति और धर्म के आधार पर दिया गया निर्णय वीरता के साथ-साथ न्यायप्रियता को भी दर्शाता है।

वीर-रस में कवि ने शब्द-संगीत, अनुप्रास और ध्वन्यात्मकता का ऐसा प्रयोग किया कि पाठक के मन में उत्साह और गौरव की लहर दौड़ उठे।

3. श्रृंगार-रस का मर्यादित माधुर्य

रीतिकालीन काव्य में श्रृंगार अक्सर चमत्कार-प्रधान और भोगवादी हो जाता है, लेकिन केशवदास ने ‘रामचन्द्रिका’ में इसे मर्यादित, सात्त्विक और भावपूर्ण बनाया।

  • राम-सीता मिलन में लज्जा, कोमलता और मंगल्य-भाव प्रमुख हैं।
  • प्रणय-चित्रण में दृष्टि-संकेत, भाव-संवाद और सांकेतिक क्रियाओं का सुंदर प्रयोग है।

इस प्रकार श्रृंगार-रस यहाँ केवल सौन्दर्य-वर्धन का साधन है, उद्देश्य नहीं।

4. करुण-रस की मार्मिकता

वनवास, सीता-हरण, लक्ष्मण-मूर्छा, सीता-त्याग—इन प्रसंगों में करुण-रस अपनी चरम सीमा पर है।

  • कवि ने कोमल, मंद्र और लयपूर्ण शब्दों का प्रयोग कर पीड़ा की गहनता को बढ़ाया।
  • करुण-रस के साथ-साथ पाठक के मन में धर्मपालन और आदर्श-निष्ठा का भाव भी जाग्रत होता है।

5. शान्त-रस की प्रतिष्ठा

कृति का अंतिम भाव शान्त-रस है, जो धर्म और कर्तव्यपालन से उत्पन्न अंतःशांति का प्रतीक है।

  • रामराज्य का वर्णन : समता, न्याय, धर्मपालन और लोककल्याण का आदर्श चित्र प्रस्तुत करता है।
  • शान्ति का संदेश : जीवन में धर्म और नीति का पालन करने से ही स्थायी शांति प्राप्त हो सकती है।

6. धर्म-नीति का भाव-आधार

‘रामचन्द्रिका’ केवल एक कथा नहीं, बल्कि धर्म और नीति का पाठ भी है।

  • राजधर्म : राजा को प्रजा के हित को सर्वोपरि रखना चाहिए।
  • पितृ-आज्ञा पालन : राम का वनवास इस सिद्धांत का अनुपम उदाहरण है।
  • वचनपालन : वचन-निष्ठा को जीवन का सर्वोच्च आदर्श माना गया है।

7. प्रकृति-चित्रण में भाव-अनुरंजन

केशवदास ने प्रकृति के चित्रण में भाव और वातावरण का अद्भुत सामंजस्य दिखाया है।

  • विरह प्रसंग में बादल, अंधियारा, मुरझाए फूल—विरह की पीड़ा को बढ़ाते हैं।
  • मिलन प्रसंग में कमल, चंद्रमा, मंद पवन—आनंद और माधुर्य का वातावरण रचते हैं।

8. अलंकारों की सज्जा, पर भाव-केन्द्रित दृष्टि

कवि ने उपमा, रूपक, अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि का प्रयोग तो किया है, लेकिन केवल चमत्कार के लिए नहीं।

  • वीर-प्रसंग : ध्वनि-अनुप्रास से उत्साह-वर्धन।
  • करुण-प्रसंग : कोमल ध्वनियों का प्रयोग भाव को गहन बनाने हेतु।

9. भाषा-शैली का सौन्दर्य

  • भाषा : ब्रजभाषा का शुद्ध, सुसंस्कृत और ललित रूप।
  • शैली : गेय, भाव-प्रधान और परीक्षा-उपयुक्त।
  • संक्षिप्तता : कम शब्दों में गहन अर्थ प्रकट करने की क्षमता।

10. चरित्र-चित्रण का भाव-आधार

केशवदास ने प्रत्येक पात्र को एक विशेष भाव के साथ जोड़ा—

  • राम : मर्यादा और करुणा।
  • सीता : पावनता और धैर्य।
  • हनुमान : निष्काम सेवा।
  • लक्ष्मण : निष्ठा और साहस।
  • भरत : त्याग और वफादारी।

11. भाव-समन्वय की विशेषता

‘रामचन्द्रिका’ में भक्ति, नीति, शौर्य और लोकमंगल का अद्भुत संतुलन है। यही इसे अन्य रीतिकालीन रचनाओं से अलग और विशिष्ट बनाता है।

निष्कर्ष

केशवदास की ‘रामचन्द्रिका’ केवल एक धार्मिक या पौराणिक कथा का पुनर्पाठ नहीं, बल्कि आदर्श जीवन, नीति, भक्ति और शौर्य का सजीव दस्तावेज है। इसमें भक्ति-रस की पवित्रता, वीर-रस का उत्साह, श्रृंगार-रस का मर्यादित माधुर्य, करुण-रस की मार्मिकता और शान्त-रस की गाम्भीर्य—सभी एक साथ उपस्थित हैं। भाषा, अलंकार, शैली और भाव-समन्वय ने इसे साहित्य का कालजयी काव्य बना दिया है।

FAQs: रामचन्द्रिका का भाव सौन्दर्य

Q1. ‘रामचन्द्रिका’ किस कवि की रचना है?
केशवदास, जो रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि हैं।

Q2. इस कृति में कौन-कौन से प्रमुख रस हैं?
भक्ति, वीर, श्रृंगार, करुण और शान्त रस।

Q3. परीक्षा में ‘भाव-सौन्दर्य’ के उत्तर में किन बिंदुओं पर जोर देना चाहिए?
रस, धर्म-नीति, भाषा-शैली, अलंकार, चरित्र-चित्रण और समन्वय।

Q4. ‘रामचन्द्रिका’ में श्रृंगार-रस कैसा है?
मर्यादित, सात्त्विक और आदर्श प्रेम पर आधारित।

Q5. ‘रामचन्द्रिका’ का मुख्य संदेश क्या है?
धर्म, नीति, भक्ति और लोकमंगल का पालन ही जीवन की सफलता है।

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