भारतीय आचार्यों द्वारा निरूपित काव्य लक्षण।

भारतीय आचार्यों द्वारा निरूपित काव्य लक्षण: भारतीय काव्यशास्त्र में “काव्य क्या है?”—इस प्रश्न पर शास्त्र के प्रारंभ से ही गंभीर चिंतन होता रहा है। विभिन्न आचार्यों ने अपनी-अपनी दृष्टि से काव्य के लक्षण (लक्षण = विशेषता / परिभाषा) निर्धारित किए। इन लक्षणों में काव्य की आत्मा, उसकी भाषा, उसका उद्देश्य और उसकी प्रभावशीलता जैसे तत्वों को ध्यान में रखा गया।

काव्य लक्षणों की दो प्रमुख धाराएँ

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य लक्षणों को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. शब्द-शक्ति पर आधारित काव्य लक्षण – जैसे अलंकारवाद, वक्रोक्ति, ध्वनि आदि।
  2. अनुभूति या प्रभाव पर आधारित काव्य लक्षण – जैसे रस निष्पत्ति, औचित्य, रीति आदि।

प्रमुख आचार्यों द्वारा प्रतिपादित काव्य लक्षण

(क) भामह (6वीं शताब्दी) – ‘काव्यालंकार’

  • उन्होंने सबसे पहले काव्य की परिभाषा दी:
    “शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्” अर्थात् शब्द और अर्थ का समुचित मेल ही काव्य है।
  • उनके अनुसार अलंकार ही काव्य की आत्मा है।

(ख) वामन (8वीं शताब्दी) – ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’

  • काव्य की आत्मा के रूप में रीति (शैली) को मान्यता दी:
    “रीतिरात्मा काव्यस्य”
  • काव्य की परिभाषा दी:
    “वाक्यं रमणीयं काव्यम्” अर्थात् वह वाक्य जो सुंदर हो, काव्य कहलाता है।

(ग) आनन्दवर्धन (9वीं शताब्दी) – ‘ध्वन्यालोक’

  • काव्य में ध्वनि (गूढ़, अप्रकट अर्थ) को मूल तत्व माना:
    “काव्यस्य आत्मा ध्वनिः”
  • उनके अनुसार काव्य वह है जिसमें मुख्य रूप से ध्वनि विद्यमान हो।

(घ) अभिनवगुप्त – रसध्वनि की व्याख्या

  • उन्होंने कहा कि काव्य की पराकाष्ठा तब है जब उसमें रस निष्पत्ति हो:
    “रसं निष्पादयति इति काव्यम्” रस की अनुभूति ही काव्य का लक्ष्य है।

(ङ) मम्मट (11वीं शताब्दी) – ‘काव्यप्रकाश’

  • मम्मट का कथन अत्यंत प्रसिद्ध है:
    “वाक्यं रसात्मकं काव्यम्”
  • उन्होंने काव्य में रस, शब्द, अर्थ, ध्वनि, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, औचित्य सभी तत्वों को सम्मिलित कर एक समन्वयवादी परिभाषा दी।

(च) विश्वनाथ – ‘साहित्यदर्पण’

  • उनके अनुसार:
    “वाक्यार्थं भावयन्त्येते ये सन्त्यलंकारास्तथा।
    रसवद्भावयुक्तं च काव्यमित्यभिधीयते॥”
  • उन्होंने रस को काव्य का प्राण माना और कहा कि जो काव्य रस से युक्त होता है, वही सच्चा काव्य है।

काव्य लक्षणों के प्रमुख तत्त्वों का सारांश

तत्वआचार्यविशेषता
शब्द + अर्थभामहकाव्य का आधार
रीतिवामनकाव्य की आत्मा
अलंकारभामह, रुद्रटसौंदर्यवर्धक तत्व
ध्वनिआनन्दवर्धनअप्रकट, सूक्ष्म अर्थ
रसभरत, अभिनवगुप्तकाव्य का प्राण
औचित्यक्षेमेन्द्रउचित अनुपात और समन्वय
वक्रोक्तिकुंतककहने का चातुर्य
समन्वयमम्मटसभी तत्त्वों का समुचित योग

उपसंहार : भारतीय आचार्यों द्वारा निरूपित काव्य लक्षण

भारतीय आचार्यों द्वारा निरूपित काव्य लक्षण यह सिद्ध करते हैं कि काव्य केवल शब्दों का संयोजन नहीं, बल्कि वह मानव हृदय को आंदोलित करने वाली कला है। काव्य की पहचान उसके सौंदर्य, भाव, शैली, चातुर्य और प्रभाव में निहित होती है। प्रत्येक आचार्य ने काव्य को एक विशेष दृष्टि से देखा, जिससे काव्यशास्त्र की परंपरा अत्यंत समृद्ध और व्यापक बन गई।

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