करुण रस का उदाहरण (Karun Ras Ka Udaharan): भारतीय काव्यशास्त्र में रस को साहित्य की आत्मा कहा गया है। नवरसों में करुण रस ऐसा रस है, जो पाठक या श्रोता के मन में दया, शोक, पीड़ा या करुणा उत्पन्न करता है। जब किसी काव्य, कथा, नाटक या दृश्य को पढ़कर या देखकर हृदय व्यथित हो उठे — वहीं करुण रस की अनुभूति होती है।
करुण रस की परिभाषा
जब किसी रचना में शोक, दुःख, वेदना, वियोग या पीड़ादायक स्थिति का चित्रण होता है, जिससे पाठक के मन में संवेदना जागे — वह करुण रस कहलाता है।
- स्थायी भाव: शोक
- विभाव: वियोग, मृत्यु, बीमारी, गरीबी
- अनुभाव: रोना, आंसू बहाना, चुप हो जाना
- संचारी भाव: स्मृति, निराशा, चिंता, क्लेश
करुण रस का उदाहरण
1. तुलसीदास — रामचरितमानस (राम का वनवास)
“हुई रहीम की आँखों में पानी,
राम गए वन, जनक सुहानी॥”
यहाँ राम के वनवास की घटना से पिता दशरथ और प्रजा की पीड़ा व्यक्त हुई है। पाठक का मन शोक से भर जाता है।
2. सूरदास
“मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो।”
यहाँ कान्हा की भोली सफाई भी करुण रस उत्पन्न करती है, क्योंकि इसे एक मासूम की याचना की तरह लिखा गया है।
3. भारतेंदु हरिश्चंद्र – गरीब की व्यथा
“हाय रे दरिद्र! क्यों तू जन्मा?
जीवनभर बस दुख ही सहना।”
यहाँ एक गरीब की आत्मव्यथा करुण रस का जीवंत चित्रण करती है।
4. महादेवी वर्मा – नीर भरी दुख की बदली
“मैं नीर भरी दुख की बदली।
स्पंदन में चिर पीड़ा पुलकित।”
यह कविता संपूर्ण करुण रस का स्वरूप है। महादेवी जी की कविताओं में स्त्री के अंतर्द्वंद्व और पीड़ा का करुण चित्रण है।
5. जयशंकर प्रसाद – कामायनी (श्रद्धा का वियोग)
“आज नहीं कुछ बोलूँगी मैं,
तुम क्यों मुझसे रूठे हो?”
यहाँ श्रद्धा की पीड़ा और मानसिक द्वंद्व करुण रस को जन्म देता है।
6. मीरा बाई – वियोग का दुख
“मीराँ के प्रभु गिरधर नागर,
हाँथ लिये मुरली।”
मीरा बाई का अपने आराध्य कृष्ण से वियोग, उनकी करुण पुकार, करुण रस का उदाहरण है।
7. संत कबीर – मानव पीड़ा पर
“दुख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोय।”
कबीर की यह पंक्ति दर्शाती है कि दुख में ही मनुष्य परमात्मा को याद करता है — यह करुण भाव का सूक्ष्म संकेत है।
8. दिनकर – रश्मिरथी (कर्ण का दंश)
“माँ मुझे अपने जन्म का रहस्य क्यों न बताया?”
कर्ण की पीड़ा और उसकी अस्वीकृति, करुण रस का गहन रूप है।
9. भीष्म पितामह – महाभारत से
जब शरशैय्या पर लेटे भीष्म अपने अंत की प्रतीक्षा करते हैं, तब उनका जीवन और त्याग करुण रस उत्पन्न करता है।
10. आधुनिक साहित्य से – प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’
हमीद की दादी की गरीबी और उसका भावुक त्याग भी करुण रस का आधुनिक उदाहरण है। कहानी का अंत पाठक के हृदय को गहराई से छूता है।
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FAQs: Karun Ras Ka Udaharan
प्रश्न 1: करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर: करुण रस का स्थायी भाव है शोक (दुःख)।
प्रश्न 2: करुण रस किन प्रसंगों में देखने को मिलता है?
उत्तर: मृत्यु, वियोग, निर्धनता, सामाजिक पीड़ा, उपेक्षा आदि प्रसंगों में।
प्रश्न 3: क्या करुण रस केवल कविता में होता है?
उत्तर: नहीं, यह कहानी, नाटक, उपन्यास, फिल्म, टीवी शो, गीत आदि सभी में हो सकता है।
निष्कर्ष
करुण रस हिंदी साहित्य का ऐसा रस है, जो पाठक या श्रोता को भावना की गहराई में ले जाकर उसे दूसरे के दुःख से जोड़ देता है। यह साहित्य को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की पाठशाला बना देता है।
प्रेमचंद से लेकर महादेवी वर्मा तक, करुण रस ने साहित्य में आँखों में आँसू और हृदय में संवेदना भरने का कार्य किया है। एक अच्छा साहित्य वही है जो आपको सोचने पर मजबूर करे — और करुण रस ऐसा ही रस है।