भूषण की काव्य-भाषा का विवेचन

भूमिका

भूषण की काव्य-भाषा का विवेचन: हिंदी साहित्य के रीति काल में जहाँ एक ओर श्रृंगार, शृंगारिक अलंकार और प्रेमाभिव्यक्ति की भरमार थी, वहीं भूषण जैसे कवि भी थे जिन्होंने वीर रस को न केवल एक साहित्यिक विषय बनाया बल्कि उसे राष्ट्रगौरव और स्वाभिमान की गूँज में बदल दिया।
भूषण की कविता में केवल शब्द नहीं होते—वे रणभेरी की ध्वनि, तलवारों की टंकार और वीरों की गर्जना के रूप में गूँजते हैं। उनकी भाषा पाठक के हृदय में देशप्रेम की अग्नि प्रज्वलित करती है।

1. भूषण का जीवन और साहित्यिक पृष्ठभूमि

भूषण का जन्म लगभग 1613 ई. में एक कायस्थ परिवार में हुआ। वे ब्रजभाषा के अप्रतिम कवि थे। उनकी साहित्यिक यात्रा उस दौर में शुरू हुई जब उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य का वर्चस्व था और स्वतंत्रता के लिए कई क्षेत्रीय नायक संघर्ष कर रहे थे।
भूषण का संबंध छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल के दरबार से रहा। उनकी कविताएँ केवल प्रशंसा नहीं थीं, बल्कि वे सैन्य प्रेरणा-पत्र के समान थीं जो युद्धभूमि में सैनिकों का हौसला बढ़ाती थीं।

प्रमुख कृतियाँ:

  • शिवराज भुषण – शिवाजी के पराक्रम का वर्णन
  • छत्रसाल दशक – छत्रसाल के गौरवगान
  • भूषण ग्रंथावली – विविध कवित्त, सवैये और दोहे का संकलन

2. भूषण की काव्य-भाषा की विशेषताएँ

(क) ओजस्विता और शक्ति का प्रवाह

भूषण की भाषा में असाधारण ओज है। उनकी पंक्तियाँ पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे बिजली कौंध रही हो और मेघ गर्जन कर रहे हों।

उद्धरण:

“जय भवानी बोल, शिवा बढ़े, बाण बरसे घनघोर,
भूषण बखानत वीरता, नभ गूँजे रण-शोर।”

इस प्रकार उनके शब्दों का प्रभाव पाठक को केवल दृश्य दिखाता ही नहीं बल्कि उस वातावरण में ले जाता है।

(ख) ब्रजभाषा का परिष्कृत और ओजपूर्ण रूप

भूषण की ब्रजभाषा में न केवल माधुर्य है बल्कि उसमें युद्ध की कठोरता भी है। वे संस्कृतनिष्ठ शब्दों का उपयोग वीरता के दृश्यों में करते हैं और देशज शब्दों का उपयोग जीवन की सजीवता के लिए।
उनकी भाषा में ध्वनि और अर्थ का अद्भुत संतुलन है—जहाँ युद्ध वर्णन में कठोर ध्वनियाँ आती हैं, वहीं प्रशंसा और गौरव के समय लयबद्धता।

(ग) अलंकारों की प्रचुरता

भूषण की भाषा में अनुप्रास, यमक, रूपक और उपमा अलंकारों का अद्भुत प्रयोग मिलता है।
उदाहरण के लिए अनुप्रास:

“भूषण भनित बखान, बहु बड़ाई, बढ़ी बहुबरन बखान।”

इन अलंकारों से उनकी भाषा में गूँज और सौंदर्य दोनों बढ़ते हैं।

(घ) युद्ध और वीरता का सजीव चित्रण

भूषण के शब्द तलवार की धार की तरह तीक्ष्ण हैं। वे युद्ध के दृश्यों को ध्वनि, रंग और गति के साथ प्रस्तुत करते हैं।

उद्धरण:

“तोपें टंकारतं, तुरकन तरकश टकराय रहे,
भाले बरसतं, बाण बिजुरी-से छाय रहे।”

यहाँ ध्वनि-चित्रण का अद्भुत उदाहरण है।

(ङ) राष्ट्रभक्ति और गौरव का स्वर

भूषण का काव्य न केवल वीरों की प्रशंसा करता है, बल्कि वह उन्हें राष्ट्र के रक्षक के रूप में स्थापित करता है।
उद्धरण:

“भूषण भनित बखान, शिवा सम नहिं कोउ धराधाम,
म्लेच्छ मर्दन महा, महिमा जगत में जस की।”

3. रस और भावों की अभिव्यक्ति

(क) वीर रस की प्रधानता

भूषण की भाषा वीर रस की अद्वितीय अभिव्यक्ति है। यह न केवल शब्दों में, बल्कि लय, ध्वनि और भाव में भी दिखाई देती है।

(ख) श्रृंगार और करुण रस की झलक

कभी-कभी वे बलिदान और त्याग के वर्णन में करुण रस का प्रयोग करते हैं, जिससे कविता और भी प्रभावी हो जाती है। श्रृंगार की कोमलता भी सीमित रूप में आती है।

4. छंद और लय की भूमिका

भूषण ने दोहा, सवैया और कवित्त जैसे छंदों का कुशल उपयोग किया। इन छंदों में उनकी भाषा ऐसी बहती है जैसे संगीत की लहरें हों, जो सुनने पर मन में जोश और उत्साह भर दें।

5. भाषा के सौंदर्य तत्व

  • ऊर्जा और गति – शब्द ऐसे प्रवाहित होते हैं जैसे युद्ध का प्रवाह।
  • संस्कृतनिष्ठ और देशज का मेल – गरिमा और सहजता का संतुलन।
  • व्यंजना और लाक्षणिकता – अर्थ में गहराई और भाव का विस्तार।
  • ध्वनि-सौंदर्य – युद्ध की आवाज या विजय के जयघोष को शब्दों से जीवंत करना।

6. ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व

भूषण की भाषा केवल साहित्यिक प्रयोग नहीं है; यह उस समय के स्वतंत्रता-संग्राम का सांस्कृतिक शस्त्र भी है। शिवाजी और छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्य उनके काव्य के माध्यम से अमर हो गए।

7. आलोचनात्मक दृष्टिकोण

कुछ आलोचक मानते हैं कि भूषण ने कभी-कभी अलंकारों के अत्यधिक प्रयोग से यथार्थ को पीछे छोड़ दिया। फिर भी, उनकी भाषा की प्रभावशीलता और प्रेरणादायी शक्ति असंदिग्ध है।

निष्कर्ष

भूषण की काव्य-भाषा में ओज, वीरता, राष्ट्रभक्ति और अलंकारों का अद्भुत संगम है। उन्होंने ब्रजभाषा को वीर रस के लिए सर्वोत्तम माध्यम सिद्ध किया और अपने शब्दों से एक पूरी पीढ़ी के हृदय में स्वतंत्रता की ज्वाला प्रज्वलित की। उनका साहित्य आज भी प्रेरणा का स्रोत है और रहेगा।

FAQs: भूषण की काव्य-भाषा का विवेचन

Q1. भूषण की काव्य-भाषा की मुख्य विशेषता क्या है?
ओज, वीरता, राष्ट्रभक्ति और अलंकारों की प्रचुरता।

Q2. भूषण किस भाषा में रचना करते थे?
मुख्यतः ब्रजभाषा में, संस्कृतनिष्ठ और देशज शब्दों के संतुलन के साथ।

Q3. भूषण का साहित्यिक योगदान क्या है?
उन्होंने वीर रस को अद्वितीय और ऊर्जावान रूप में प्रस्तुत किया।

Q4. भूषण की प्रमुख रचनाएँ कौन-सी हैं?
शिवराज भुषण, छत्रसाल दशक, भूषण ग्रंथावली।

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