भारतेन्दु और मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-भाषा और शिल्प: हिंदी साहित्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चंद्र और मैथिलीशरण गुप्त दो ऐसे स्तंभ हैं जिन्होंने क्रमशः नवजागरण और राष्ट्रवादी चेतना को अपनी रचनाओं में स्वर दिया। भारतेन्दु को हिंदी नवजागरण का अग्रदूत माना जाता है जबकि मैथिलीशरण गुप्त को “भारत भारती के गायक” के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
दोनों कवियों की भाषा, शिल्प, विषयवस्तु और सौंदर्यबोध की दृष्टि से विश्लेषण करना हिंदी साहित्य के काव्य-प्रवृत्तियों को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह लेख इन्हीं दोनों महत्त्वपूर्ण कवियों की काव्य भाषा और शिल्प की गहराई से तुलनात्मक समीक्षा करता है।
1. भारतेन्दु की काव्य-भाषा
1.1 बोलचाल की भाषा का प्रवाह
भारतेन्दु की काव्य-भाषा में खड़ी बोली और ब्रजभाषा का सुंदर मिश्रण मिलता है। वे भाषा को जनसामान्य की अभिव्यक्ति का माध्यम मानते थे। इसलिए उन्होंने शुद्ध संस्कृतनिष्ठ या फारसीयुक्त भाषा के स्थान पर सजीव, सहज और स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया।
उदाहरण:
“नीति गान कर लो भैया, नीति से सुख होइ।
नीति रहित कुल बंधु सब, जग में होत न कोई॥”
1.2 हास्य-व्यंग्य और सामाजिक चेतना
उनकी भाषा में कटाक्ष, व्यंग्य और हास्य का गहरा प्रभाव मिलता है। सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं को उन्होंने जनभाषा में ही उजागर किया।
2. मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-भाषा
2.1 खड़ी बोली का परिष्कृत प्रयोग
गुप्त जी को खड़ी बोली काव्य का प्रर्वतक माना जाता है। उन्होंने हिंदी को संस्कृतनिष्ठ शब्दों से सजाया और उसे गद्यात्मकता से ऊपर उठाकर काव्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
उनकी भाषा में शुद्धता, गाम्भीर्य और उच्च आदर्शों की अभिव्यक्ति मिलती है:
“जिसे नहीं है भावना कोई,
वही नर है पशु सम होई।”
2.2 भावनात्मक गंभीरता
गुप्त जी की भाषा में राष्ट्रप्रेम, नारी-शक्ति, धार्मिक आदर्श और सामाजिक चिंतन की झलक मिलती है। उनकी शैली में अनुशासन और गहराई है, जिसमें भावनाओं का प्रभावशाली प्रवाह होता है।
3. काव्य शिल्प की दृष्टि से तुलना
3.1 भारतेन्दु का शिल्प
- छंद विविधता: भारतेन्दु ने दोहा, चौपाई, सवैया, कुंडलिया आदि छंदों का प्रयोग किया।
- नाटकीयता: उन्होंने नाटक विधा को भी काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया।
- तत्कालीन संदर्भ: उनका शिल्प समय-सापेक्ष है — तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों, अंग्रेजी शासन के प्रभाव, और संस्कृति के पतन को दर्शाता है।
- सहज चित्रण: शिल्प में साधारण जन-जीवन का चित्रण मिलता है।
3.2 गुप्त जी का शिल्प
- महाकाव्यात्मकता: गुप्त जी के शिल्प में रामायण, महाभारत, बौद्ध साहित्य की प्रेरणा है।
- विषय चयन: उन्होंने इतिहास, मिथक और आदर्श पात्रों के माध्यम से सामाजिक संदेश दिए।
- छंदबद्धता: गुप्त जी के काव्य में छंदों की नियमबद्धता और पांडित्यपूर्ण शैली मिलती है।
- उपदेशात्मकता: उनके शिल्प में नैतिकता और उद्देश्य का स्पष्ट बोध होता है।
4. शैलीगत विशेषताएँ
तत्व | भारतेन्दु हरिश्चंद्र | मैथिलीशरण गुप्त |
---|---|---|
भाषा | जनमानस की बोलचाल की भाषा | संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली |
शैली | व्यंग्यप्रधान, तात्कालिकता | गंभीर, आदर्शवादी |
शिल्प | छंदों की विविधता, लोक शैली | नियमबद्ध छंद, महाकाव्यात्मकता |
उद्देश्य | सामाजिक सुधार | नैतिक उत्थान व राष्ट्र-निर्माण |
अभिव्यक्ति | सहज, चित्रात्मक | गूढ़, भावनात्मक |
5. साहित्यिक योगदान की तुलनात्मक अंतर्दृष्टि
- भारतेन्दु ने हिंदी साहित्य को जनमानस से जोड़ा और उसे नवजागरण की ओर अग्रसर किया। वे भाषा को जनसंवाद का माध्यम मानते थे। उनके शिल्प में विविधता और जीवंतता है।
- मैथिलीशरण गुप्त ने हिंदी को राष्ट्रवादी चेतना और नैतिक मूल्यों से जोड़ा। उन्होंने हिंदी को साहित्यिक ऊँचाई प्रदान की और खड़ी बोली को एक प्रतिष्ठित काव्य भाषा के रूप में स्थापित किया।
6. निष्कर्ष
भारतेन्दु और मैथिलीशरण गुप्त दोनों ने हिंदी भाषा और शिल्प को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं, किंतु उनके दृष्टिकोण, भाषा चयन और शिल्प की दिशा अलग-अलग रही। भारतेन्दु ने जहाँ व्यंग्य और जनभाषा से साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया, वहीं गुप्त जी ने आदर्श चरित्रों और संस्कृतनिष्ठ भाषा के माध्यम से नैतिक चेतना को जागृत किया।
दोनों कवियों की भाषा और शिल्प, अपने-अपने काल और उद्देश्य के अनुरूप साहित्यिक गरिमा और प्रभावशीलता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
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FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
प्र.1: भारतेन्दु हरिश्चंद्र की भाषा की विशेषता क्या है?
उ: उनकी भाषा बोलचाल की थी, जिसमें व्यंग्य और समाजिक कटाक्ष की विशेषता थी।
प्र.2: मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा का स्वरूप कैसा था?
उ: संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली, गंभीर और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण।
प्र.3: भारतेन्दु और गुप्त जी के शिल्प में क्या मुख्य अंतर है?
उ: भारतेन्दु का शिल्प सहज और जनसुलभ था, जबकि गुप्त जी का शिल्प महाकाव्यात्मक और शुद्ध छंदों पर आधारित।
प्र.4: गुप्त जी को ‘राष्ट्रकवि’ क्यों कहा जाता है?
उ: उनके काव्य में राष्ट्रप्रेम, स्वतंत्रता और भारतीय संस्कृति के आदर्शों का गहन चित्रण मिलता है।
प्र.5: क्या दोनों कवियों ने खड़ी बोली का प्रयोग किया?
उ: हाँ, परंतु भारतेन्दु ने ब्रज और खड़ी बोली का मिश्रण किया जबकि गुप्त जी ने शुद्ध खड़ी बोली को अपनाया।