भारतेंदु और हिंदी नवजागरण

भारतेंदु और हिंदी नवजागरण: हिंदी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850–1885) एक ऐसे प्रकाशस्तंभ हैं जिन्होंने न केवल भाषा को नया स्वरूप दिया बल्कि समाज के विविध पक्षों को साहित्य से जोड़कर हिंदी नवजागरण का मार्ग प्रशस्त किया। उन्हें “हिंदी नाट्य के जनक” और “आधुनिक हिंदी का पितामह” कहा जाता है। भारतेंदु युग केवल साहित्यिक आंदोलन नहीं था, वह एक सामाजिक-सांस्कृतिक नवजागरण का बिंब था।


भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु का जन्म 9 सितंबर 1850 को बनारस (काशी) में हुआ। वे एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार से थे। कम आयु में ही उन्होंने काव्य, नाटक और पत्रकारिता में प्रवेश किया। उनकी लेखनी में संवेदना, सामाजिक चेतना, और राष्ट्रप्रेम के भाव प्रमुख रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।

उनकी रचनात्मकता का क्षेत्र बहुआयामी था — नाटक, कविता, गद्य, संपादन, अनुवाद और पत्रकारिता सभी में वे पारंगत थे। उन्होंने ‘कविवचन सुधा’, ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’, ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ जैसे पत्रों का संपादन कर सामाजिक चेतना को प्रसारित किया।


हिंदी नवजागरण की पृष्ठभूमि

हिंदी नवजागरण की पृष्ठभूमि: हिंदी नवजागरण का अर्थ है सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक पुनर्जागरण। यह आंदोलन बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर भारत में उन्नीसवीं शताब्दी में पनपा। भारत में अंग्रेजी शासन, औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली और छपाई तकनीक के आगमन से नए विचारों का संचार हुआ।

इस समय भारत में सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास, स्त्री-शिक्षा की उपेक्षा, जातिवाद, और राजनैतिक गुलामी के विरुद्ध जागृति की आवश्यकता थी। यही वह समय था जब भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य को सामाजिक क्रांति का माध्यम बनाया।


भारतेंदु का साहित्य और नवजागरण

1. सामाजिक चेतना

भारतेंदु का साहित्य समाज की समस्याओं का दर्पण है। उन्होंने दहेज प्रथा, नारी उत्पीड़न, अंधविश्वास, और गरीबी के विरुद्ध लेखनी चलाई। उनके नाटक “भारत दुर्दशा” में भारत की राजनैतिक और सामाजिक स्थितियों की तीव्र आलोचना है।

“नीति बानी धर्म की, और लोभ बानी देस” — यह पंक्ति भारत की उस समय की स्थिति का चित्रण करती है।

2. राष्ट्रभक्ति और स्वदेश प्रेम

भारतेंदु का साहित्य स्वदेशी भावना से ओत-प्रोत था। उन्होंने अंग्रेजी शासन की आलोचना करते हुए भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का आह्वान किया। उनके लेखों और नाटकों में भारतीय आत्मा की पीड़ा और संघर्ष झलकता है।

3. नारी विषयक दृष्टिकोण

वे नारी शिक्षा और सशक्तिकरण के समर्थक थे। उनके नाटकों में महिलाओं को न केवल करुणा का पात्र बल्कि बदलाव की वाहक के रूप में चित्रित किया गया है।

4. भाषा और शैली

भारतेंदु ने सरल, सजीव और बोलचाल की हिंदी को साहित्य की भाषा बनाया। उन्होंने ब्रज, अवधी और खड़ी बोली का मिश्रण कर एक ऐसी शैली विकसित की जो जनमानस से सीधा संवाद करती थी।


पत्रकारिता के माध्यम से नवचेतना

भारतेंदु का मानना था कि पत्रकारिता समाज सुधार का औजार हो सकती है। उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ और ‘कविवचन सुधा’ जैसे पत्रों के ज़रिए जनता में जागरूकता फैलाई। उनके संपादकीय लेख जनजागरण का सशक्त माध्यम बने।


नाटक और रंगमंच का योगदान

भारतेंदु ने हिंदी रंगमंच को आधुनिक रूप दिया। उनके नाटक केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज की समस्याओं को उजागर करने वाले औजार थे। जैसे:

  • अंधेर नगरी
  • भारत दुर्दशा
  • सत्य हरिश्चंद्र

इनमें हास्य, व्यंग्य और प्रतीकात्मकता के माध्यम से गहरी सामाजिक टिप्पणियाँ की गईं।


भारतेंदु युग की विशेषताएँ

  1. सामाजिक सुधारवाद — विधवा विवाह, नारी शिक्षा, छुआछूत का विरोध
  2. राष्ट्रभक्ति और सांस्कृतिक चेतना — स्वदेशी आंदोलन की पूर्वपीठिका
  3. जनमानस की भाषा में साहित्य — हिंदी का लोकशैली से जुड़ाव
  4. पत्रकारिता का विकास — जन संवाद का साधन
  5. नाट्य-कला का उत्कर्ष — साहित्य और मंच का समन्वय

भारतेंदु और आधुनिक हिंदी का निर्माण

भारतेंदु की देन को यदि एक पंक्ति में कहा जाए, तो वे हिंदी भाषा, साहित्य और समाज तीनों के समन्वयकर्ता थे। उन्होंने साहित्य को बंद दरबारों से निकालकर जनमानस तक पहुंचाया। आज जो हिंदी साहित्य की मुख्यधारा है, उसका आधार भारतेंदु युग में ही डाला गया।|

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FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्र.1: भारतेंदु हरिश्चंद्र को ‘आधुनिक हिंदी का जनक’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: क्योंकि उन्होंने हिंदी भाषा को सरल, जनभाषा के रूप में प्रस्तुत किया और साहित्य को सामाजिक सुधार का माध्यम बनाया।

प्र.2: भारतेंदु ने किस पत्रिका का संपादन किया था?

उत्तर: उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’, ‘कविवचन सुधा’, और ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।

प्र.3: भारतेंदु युग कब से कब तक माना जाता है?

उत्तर: सामान्यतः भारतेंदु युग को 1868 से 1885 तक माना जाता है।

प्र.4: भारतेंदु का सबसे प्रसिद्ध नाटक कौन सा है?

उत्तर: ‘अंधेर नगरी’ और ‘भारत दुर्दशा’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं।

प्र.5: भारतेंदु का हिंदी नवजागरण में क्या योगदान रहा?

उत्तर: उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना, राष्ट्रभक्ति, और साहित्यिक नवोन्मेष के जरिए नवजागरण को सशक्त रूप प्रदान किया।


निष्कर्ष

भारतेंदु हरिश्चंद्र एक व्यक्ति नहीं, एक चेतना थे। उन्होंने साहित्य, भाषा, समाज और राष्ट्र को एकत्र कर हिंदी नवजागरण की एक अनुपम कथा रची। उनके द्वारा जगाई गई चेतना आज भी प्रासंगिक है और हिंदी साहित्य के विकास में उनका योगदान अमिट और ऐतिहासिक है।

 

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