भूमिका
बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई: मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। यह कहानी केवल एक ईद के मेले की यात्रा नहीं है, बल्कि बालक हामिद की सोच, संवेदना और त्याग को इतनी परिपक्वता से प्रस्तुत करती है कि वह ‘बच्चा हामिद’ से ‘बूढ़ा हामिद’ बन जाता है। वहीं अमीना, जो कहानी की आरंभ में एक बूढ़ी दादी के रूप में चित्रित होती है, अंत में ‘बालिका अमीना’ बनकर सामने आती है।
कथन – “बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई।” – इस कहानी के मूल भावों को उजागर करता है। इस लेख में हम इस कथन का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
बूढ़े हामिद का अर्थ: उम्र नहीं, अनुभव की परिपक्वता
बालक हामिद की मानसिकता
हामिद केवल चार-पांच साल का बच्चा है। उसकी उम्र ऐसी है जिसमें अन्य बच्चे खिलौने, मिठाई और झूले के पीछे भागते हैं। परंतु हामिद का दृष्टिकोण इन सबसे अलग है। उसके पास पैसे बहुत कम हैं – केवल तीन पैसे। लेकिन उसकी सोच में परिपक्वता है, संवेदनशीलता है, और सबसे बड़ी बात – त्याग की भावना है।
चिमटा खरीदने का निर्णय
जब सभी बच्चे मिठाइयाँ, खिलौने और आकर्षक चीजें खरीदते हैं, हामिद उन सबसे अलग अपनी दादी अमीना की पीड़ा को समझते हुए चिमटा खरीदता है। वह जानता है कि जब दादी रोटियाँ सेंकती हैं, तो उनके हाथ जल जाते हैं। इस दुख को कम करने के लिए वह चिमटे को अपने तीन पैसों से खरीदता है।
बूढ़ा हामिद क्यों?
हामिद का यह निर्णय केवल उसके लिए नहीं है; वह अपने से बड़ों की तरह सोचता है। इसीलिए लेखक ने कहा है कि “बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला।” यह ‘बूढ़ा’ शब्द यहाँ आयु का नहीं, बल्कि अनुभव और परिपक्वता का प्रतीक है। ऐसा त्याग, ऐसी सोच तो अक्सर उम्रदराज़ लोगों में ही देखने को मिलती है। प्रेमचंद ने इस रूप में हामिद को बूढ़े का दर्जा दिया।
बालिका अमीना: वात्सल्य से भीगी भावनाएं
बूढ़ी दादी की भूमिका
कहानी में अमीना एक बूढ़ी, निर्धन, और अपनी संतान खो चुकी महिला के रूप में दिखाई जाती है। वह हामिद की चिंता करती है, उसके लिए पैसे बचाती है, और उपवास करके उसका पालन करती है। वह कठोर दिखती है, पर अंदर से अत्यंत कोमल है।
हामिद की भेंट पर प्रतिक्रिया
जब हामिद चिमटा लेकर लौटता है, अमीना क्रोधित होती है कि वह खाने-पीने की चीजों के बजाय लोहे का चिमटा लेकर आया है। लेकिन जब हामिद उसके हाथ जलने की चिंता व्यक्त करता है, अमीना रो पड़ती है।
बालिका क्यों?
उस क्षण में वह कठोर बूढ़ी दादी नहीं रहती। उसकी आंखों में बालिका की तरह निर्दोषता, कोमलता, और भावुकता आ जाती है। वह एक माँ नहीं, एक छोटी बच्ची बन जाती है – जो हामिद के प्रेम से पिघल जाती है। यही कारण है कि लेखक ने लिखा, “बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई।”
प्रतीकात्मकता का साहित्यिक विश्लेषण
बूढ़े हामिद और बालिका अमीना: प्रतीकों की भाषा
यह कथन प्रतीकों में गहरा अर्थ छिपाए हुए है:
- बूढ़ा हामिद प्रतीक है उस सोच का, जिसमें व्यक्ति अपने सुख-दुख से ऊपर उठकर किसी प्रियजन की खुशी के लिए सोचता है।
- बालिका अमीना प्रतीक है उस भावनात्मक प्रतिक्रिया का, जो त्याग और प्रेम को देखकर स्वाभाविक रूप से फूट पड़ती है।
यह रूपांतरण केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और आत्मिक बदलावों का संकेत है।
प्रेमचंद की कला
प्रेमचंद की लेखनी में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह साधारण घटनाओं में गहरी मानवीय संवेदना को दर्शाते हैं। ‘ईदगाह’ में भी उन्होंने बालक और वृद्धा के माध्यम से वह कुछ कह दिया जो बड़े-बड़े उपन्यासकार भी नहीं कह पाते।
बालक मनोविज्ञान और हामिद
आत्मीयता और संवेदनशीलता
हामिद के व्यवहार में गहराई है। बचपन में इतनी संवेदनशीलता दुर्लभ होती है, लेकिन प्रेमचंद ने यह दर्शाया कि गरीबी, जिम्मेदारी और प्रेम मिलकर बच्चे को समय से पहले बड़ा बना सकते हैं।
भावनात्मक परिपक्वता
उसका निर्णय यह दिखाता है कि एक बच्चा भी परिस्थितियों से प्रेरित होकर अत्यधिक परिपक्वता प्राप्त कर सकता है। उसकी सोच किसी दार्शनिक से कम नहीं लगती।
मातृत्व का प्रतीक: अमीना
कठोरता में छिपा स्नेह
कहानी की शुरुआत में अमीना के कुछ वाक्य कठोर प्रतीत होते हैं, जैसे “जले पर नमक छिड़कने आ रही है यह औरतें।” लेकिन यह कठोरता सिर्फ बाहरी है। अंदर एक माँ का हृदय धड़कता है।
पुत्रवत स्नेह
हामिद उसका पोता है, परंतु अमीना के लिए वह सब कुछ है। जब हामिद चिमटा लाकर उसकी पीड़ा को समझने की कोशिश करता है, अमीना का वात्सल्य उमड़ पड़ता है। यह भाव किसी छोटी बालिका के जैसे निश्छल और निष्कलंक होते हैं।
नैतिक शिक्षा और समाज के लिए संदेश
त्याग की महत्ता
आज के भौतिकवादी युग में जब बच्चे महंगे मोबाइल, खिलौनों और कपड़ों की मांग करते हैं, हामिद जैसा बच्चा हमें त्याग और सोच की शिक्षा देता है।
प्रेम और करुणा
हामिद का व्यवहार हमें यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम वह होता है जो बिना कहे, बिना मांगे सबकुछ दे देता है। वहीं अमीना का व्यवहार दर्शाता है कि स्नेह और वात्सल्य हर रिश्ते की नींव होते हैं।
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निष्कर्ष
मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ केवल एक कहानी नहीं, संवेदनाओं का गाथा है। उसमें हामिद केवल बच्चा नहीं, एक सच्चा ‘बूढ़ा’ यानी परिपक्व इंसान है। वहीं अमीना माँ की गोद में छिपी एक मासूम बालिका है। यह कथन कि “बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई।” एक गहन साहित्यिक व्याख्या है, जिसमें भाव, संवेदना, प्रेम, और त्याग का अद्भुत संगम है।