केशवदास और रामचंद्रिका का परिचय
केशवदास रामचंद्रिका अंगद रावण संवाद: केशवदास (1555-1617) हिंदी साहित्य के रीतिकाल के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। उनका काव्य रामचंद्रिका न केवल रामकथा का भावपूर्ण पुनः प्रस्तुतीकरण है, बल्कि इसमें भाषा, शैली और भाव सौंदर्य का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इसमें उन्होंने वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों को अपने दृष्टिकोण से पुनर्गठित किया है।
अंगद रावण संवाद प्रसंग रामचंद्रिका का एक प्रमुख अंश है, जिसमें नायक और खलनायक के बीच बौद्धिक, नैतिक और भावनात्मक टकराव को अद्भुत ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
अंगद रावण संवाद का प्रसंग
लंका युद्ध से पूर्व, श्रीराम ने शांति का अंतिम संदेश भेजने के लिए वानर सेनापति अंगद को रावण के दरबार में भेजा। अंगद का उद्देश्य था—रावण को सीता को लौटाने और अनावश्यक रक्तपात से बचने के लिए समझाना।
इस प्रसंग में संवाद केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह दो विचारधाराओं का टकराव है—धर्म और अधर्म, न्याय और अन्याय, मर्यादा और अहंकार।
अंगद का व्यक्तित्व और वाणी
अंगद को केशवदास ने साहस, बुद्धिमत्ता और स्पष्टवादिता का प्रतीक दिखाया है। उनकी वाणी में संयम है, लेकिन दृढ़ता भी है। वे रावण को स्मरण कराते हैं कि—
- धर्म का पालन करना राजा का प्रथम कर्तव्य है।
- पराई स्त्री का हरण न केवल नैतिक, बल्कि सामाजिक अपराध भी है।
- श्रीराम के विरुद्ध युद्ध विनाशकारी सिद्ध होगा।
अंगद का आत्मविश्वास इतना प्रबल है कि वे रावण के दरबार में भी बिना भय के सत्य कह पाते हैं।
रावण की प्रतिक्रिया
रावण का व्यक्तित्व अहंकार और सत्ता के मद से भरा हुआ है। केशवदास ने उसे एक विद्वान, किंतु घमंडी शासक के रूप में चित्रित किया है, जो अपने दोषों को स्वीकारने से इनकार करता है।
रावण, अंगद के तर्कों को सुनते हुए भी अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा के मोह में फंसा रहता है। वह न केवल सीता को लौटाने से इंकार करता है, बल्कि युद्ध की चुनौती भी देता है।
संवाद की भाषा और शैली
केशवदास ने इस प्रसंग में रीतिकालीन अलंकार शास्त्र का अद्भुत प्रयोग किया है।
- उपमा: अंगद और रावण की तुलना क्रमशः पर्वत और समुद्र से की गई है।
- अनुप्रास: समान ध्वनियों की पुनरावृत्ति से वाणी में लय और तीव्रता आती है।
- व्यंग्य: अंगद की बातें रावण के अहंकार को तोड़ने का प्रयास करती हैं।
संवाद का प्रवाह ऐसा है कि पाठक को लगता है मानो वे लंका के दरबार में उपस्थित हों।
संवाद का सांस्कृतिक और नैतिक महत्व
यह संवाद केवल एक ऐतिहासिक/पौराणिक घटना नहीं है, बल्कि जीवन के लिए भी प्रेरक है—
- सत्य की विजय: चाहे परिस्थिति कितनी भी विपरीत हो, सत्य बोलना आवश्यक है।
- अहंकार का परिणाम: सत्ता और शक्ति का मद अंततः विनाश लाता है।
- दूत का महत्व: शांति के लिए संवाद हमेशा पहला कदम होना चाहिए।
रीतिकालीन दृष्टिकोण से विश्लेषण
रीतिकाल में भले ही शृंगार रस का प्रभुत्व था, लेकिन रामचंद्रिका में वीर, करुण और शांति रस का भी सुंदर समावेश है। अंगद-रावण संवाद वीर और शांति रस का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें कवि ने कूटनीतिक भाषा, नीतिकथाओं और धार्मिक मूल्यों को समाहित किया है।
आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
आज भी यह प्रसंग बताता है कि—
- सत्ता और शक्ति के मद में निर्णय लेने से पहले नैतिक दृष्टि जरूरी है।
- संवाद और वार्ता, संघर्ष से बेहतर विकल्प हैं।
- अहंकार में किया गया कोई भी निर्णय दीर्घकालिक हानि पहुंचा सकता है।
निष्कर्ष
केशवदास की रामचंद्रिका में अंगद-रावण संवाद केवल एक साहित्यिक प्रसंग नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा का जीवंत उदाहरण है। यह हमें बताता है कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति हो, अपने आत्मसम्मान और सिद्धांतों से समझौता नहीं करता।
FAQs
Q1. केशवदास की रामचंद्रिका किस काव्यकाल से संबंधित है?
यह काव्य रीतिकाल से संबंधित है, जो 16वीं-17वीं शताब्दी में विकसित हुआ।
Q2. अंगद-रावण संवाद का मुख्य संदेश क्या है?
धर्म, सत्य और नैतिक मूल्यों की स्थापना, तथा अहंकार के परिणामों की चेतावनी।
Q3. केशवदास ने अंगद के चरित्र को कैसे चित्रित किया है?
साहसी, बुद्धिमान, स्पष्टवादी और धर्मनिष्ठ वीर के रूप में।
Q4. रावण के संवाद से क्या स्पष्ट होता है?
उसका अहंकार, सत्ता का मद, और सत्य स्वीकारने से इनकार।
Q5. यह प्रसंग आज के समय में कैसे प्रासंगिक है?
यह नेतृत्व, नैतिकता और संवाद की महत्ता पर बल देता है।