खड़ी बोली आन्दोलन के संदर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान

1. भूमिका

खड़ी बोली आन्दोलन के संदर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान: हिंदी साहित्य का इतिहास केवल रचनाओं की श्रृंखला नहीं, बल्कि एक सतत भाषाई और सांस्कृतिक संघर्ष की गाथा है। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदी साहित्य की प्रमुख भाषाएँ ब्रजभाषा और अवधी थीं, जबकि खड़ी बोली का स्थान सीमित और गौण था। यहीं से एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने हिंदी की धारा को बदल दिया — खड़ी बोली आन्दोलन
इस आंदोलन में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान इतना महत्त्वपूर्ण रहा कि उन्हें इस क्रांति का प्रमुख शिल्पी माना जाता है। उन्होंने खड़ी बोली को न केवल साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाई, बल्कि इसे राष्ट्रीय आंदोलन और सामाजिक सुधार का सशक्त माध्यम भी बनाया।

खड़ी बोली आन्दोलन की पृष्ठभूमि

19वीं शताब्दी के मध्य तक हिंदी साहित्य का केंद्र ब्रजभाषा था, जो मुख्य रूप से काव्य रचना के लिए प्रयुक्त होती थी।

  • ब्रजभाषा – भावात्मक और काव्यात्मक परंपरा की भाषा
  • अवधी – भक्ति और लोककाव्य की प्रधान भाषा
  • खड़ी बोली – प्रशासन और शहरी बोलचाल में सीमित

ब्रजभाषा और अवधी की साहित्यिक महत्ता के बावजूद, इनकी जटिलता और सीमित प्रादेशिक समझ ने इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन की जरूरतों के अनुरूप नहीं बनाया। शिक्षा का प्रसार, औद्योगिक विकास और स्वतंत्रता संग्राम जैसे नए संदर्भों के लिए एक ऐसी भाषा चाहिए थी जो सरल, सुलभ और सर्वग्राह्य हो — और यह आवश्यकता खड़ी बोली पूरी कर सकती थी।

महावीर प्रसाद द्विवेदी का संक्षिप्त जीवन परिचय

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 को रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में प्राप्त की और आगे की शिक्षा रेलवे विभाग में नौकरी करते हुए पूरी की।

  • प्रारंभिक कार्य – रेलवे में क्लर्क, फिर टिकट निरीक्षक
  • साहित्यिक आरंभ – कविताएँ, निबंध और आलोचनात्मक लेखन
  • ‘सरस्वती’ पत्रिका से जुड़ाव – 1903 में संपादक बने और 1920 तक संपादन किया

उनका जीवन अनुशासन, परिश्रम और साहित्य के प्रति समर्पण का उदाहरण है।

1. खड़ी बोली को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में योगदान

1.1 भाषा-संशोधन और मानकीकरण

द्विवेदी जी ने भाषा को अनावश्यक कठिन तत्सम शब्दों और भारी-भरकम मुहावरों से मुक्त किया। उन्होंने:

  • सरल और सहज शब्दों का प्रयोग किया
  • व्याकरण में अनुशासन लाया
  • वाक्य संरचना को स्पष्ट और प्रभावी बनाया

इससे खड़ी बोली आम पाठक तक पहुँची और राष्ट्रीय आंदोलन की आवाज बनी।

1.2 विषय-विस्तार

उनके लेखन में साहित्य केवल भावनाओं का माध्यम नहीं, बल्कि ज्ञान और विचार का साधन भी था। उन्होंने इतिहास, विज्ञान, राजनीति, समाज सुधार, शिक्षा और स्त्री जागृति जैसे विविध विषयों को खड़ी बोली में प्रस्तुत किया।

1.3 पाठक वर्ग का विस्तार

साहित्य को उन्होंने केवल शिक्षित वर्ग तक सीमित नहीं रखा। उनकी भाषा और विषय चयन ने ग्रामीण और शहरी, दोनों वर्गों को जोड़ने का काम किया।

2. ‘सरस्वती पत्रिका’ – आंदोलन का प्रमुख मंच

2.1 संपादन काल (1903–1920)

द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ को खड़ी बोली साहित्य का केन्द्र बना दिया। इसके माध्यम से उन्होंने:

  • नए लेखकों को प्रोत्साहित किया
  • आधुनिक विचारधारा का प्रचार किया
  • सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर विमर्श शुरू किया

2.2 राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना का प्रसार

‘सरस्वती’ में प्रकाशित लेखों में स्वदेशी आंदोलन, स्त्री शिक्षा, छुआछूत उन्मूलन और स्वतंत्रता संग्राम जैसे मुद्दों पर चर्चा होती थी।

2.3 खड़ी बोली के गद्य साहित्य का विकास

पत्रिका में प्रकाशित निबंध, आलोचनाएँ, कहानियाँ और कविताएँ खड़ी बोली को हर साहित्यिक रूप में स्थापित करने का प्रयास थीं।

3. नए लेखकों को तैयार करने में भूमिका

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने न केवल स्वयं लिखा, बल्कि अनेक लेखकों को दिशा भी दी।

  • मैथिलीशरण गुप्त – ‘भारत-भारती’ जैसी राष्ट्रीय चेतना से भरपूर कृति
  • जयशंकर प्रसाद – खड़ी बोली नाटक और काव्य में योगदान
  • सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ – नव काव्यधारा के प्रवर्तक
    इन रचनाकारों की सफलता में द्विवेदी जी की संपादकीय दृष्टि और मार्गदर्शन की अहम भूमिका रही।

4. सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना में योगदान

द्विवेदी जी ने साहित्य को समाज सुधार का उपकरण माना।

  • स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया
  • जाति प्रथा और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया
  • राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता के विचार को जन-जन तक पहुँचाया
    उनका मानना था कि साहित्य को केवल सौंदर्यबोध तक सीमित न रहकर समाज की समस्याओं से सीधा संवाद करना चाहिए।

5. द्विवेदी युग की विशेषताएँ और प्रभाव

द्विवेदी युग (1900–1920) हिंदी साहित्य के इतिहास में परिवर्तन का प्रतीक है। इसकी मुख्य विशेषताएँ:

  1. सरल और शुद्ध भाषा का प्रयोग
  2. सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का प्रसार
  3. साहित्य में ज्ञान-विज्ञान, इतिहास और सुधारवादी विषयों का समावेश
  4. गद्य और पद्य दोनों में खड़ी बोली का सफल प्रयोग

6. महावीर प्रसाद द्विवेदी का स्थायी साहित्यिक प्रभाव

द्विवेदी जी के प्रयासों से खड़ी बोली हिंदी साहित्य की मुख्यधारा बनी और आगे चलकर यह भारतीय राष्ट्रभाषा बनने की राह पर अग्रसर हुई।

  • उनके भाषाई मानकों को आज भी हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में आदर्श माना जाता है।
  • उन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए साहित्यिक और भाषाई दिशा तय की।

7. निष्कर्ष

खड़ी बोली आन्दोलन में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान केवल एक संपादक या लेखक का नहीं, बल्कि भाषा-संरक्षक और राष्ट्रीय विचारक का था। उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों ही स्तरों पर स्थापित किया।
उनकी विरासत यह सिखाती है कि भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की आधारशिला भी हो सकती है।

FAQs

प्रश्न 1: खड़ी बोली आन्दोलन क्या था?
उत्तर: यह आंदोलन हिंदी की खड़ी बोली को साहित्यिक और राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए चलाया गया था।

प्रश्न 2: महावीर प्रसाद द्विवेदी का मुख्य योगदान क्या था?
उत्तर: उन्होंने खड़ी बोली को साहित्य में प्रतिष्ठित किया, ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन किया और सामाजिक-राष्ट्रीय मुद्दों को साहित्य से जोड़ा।

प्रश्न 3: द्विवेदी युग की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: भाषा में सरलता, विषय-विस्तार, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना का समावेश।

प्रश्न 4: किन प्रमुख लेखकों को द्विवेदी जी ने मार्गदर्शन दिया?
उत्तर: मैथिलीशरण गुप्त, निराला, जयशंकर प्रसाद सहित कई प्रमुख रचनाकार।

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