प्रस्तावना
बिहारी का काव्य-सौन्दर्य: हिंदी साहित्य के रीतिकाल को अलंकार और श्रृंगार का युग कहा जाता है, और इस युग में बिहारीलाल (1595–1663) का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनकी अमर कृति ‘बिहारी सतसई’ में 700 से अधिक दोहे हैं, जिनमें संक्षिप्तता, गहन भावाभिव्यक्ति, अलंकारिक सौन्दर्य और जीवनानुभव का अद्भुत संगम है। बिहारी को दोहा-शिल्प का महारथी माना जाता है।
रीतिकालीन कवियों में कुछ ने केवल अलंकार पर बल दिया, कुछ ने भावों पर, पर बिहारी ने भाव और अलंकार का ऐसा संतुलन प्रस्तुत किया कि उनका काव्य सदैव प्रासंगिक बना रहा।
1. भाव-सौन्दर्य
(क) श्रृंगार-रस की माधुरी
बिहारी के काव्य में श्रृंगार-रस का प्रचुर और उत्कृष्ट रूप मिलता है। उनके दोहे संयोग और वियोग दोनों अवस्थाओं में प्रेम की कोमल भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
उदाहरण –
कहत नटत रीझत खिजत, मिलत खिलत लजि जात।
भरे भौंह से नैन हेरि, करत सनेह सुजात॥
यहाँ नायिका के हाव-भावों का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण है – कहना, नटना, रीझना, खिजना; यह सब प्रेम की चंचलता और लज्जा को दर्शाता है।
(ख) वियोग की वेदना
वियोग में भी बिहारी ने प्रेम की तड़प और बेचैनी को बड़ी मार्मिकता से व्यक्त किया है।
उदाहरण –
बिनु देखे तृप्ति न होइ, देखे मन न भराइ।
तृप्ति तृप्ति मन-मन, भई, अगनि भई न बुझाइ॥
यहाँ मिलन की प्यास का विरोधाभास है – देखने पर भी मन नहीं भरता, न देखने पर तो और भी तृष्णा बढ़ती है।
(ग) हास्य-रस की छटा
बिहारी कभी-कभी प्रेम-परिस्थितियों में कोमल हास्य का पुट भी जोड़ते हैं।
उदाहरण –
कहत न सखि स्याह भई, कोयल की बोली।
मन मतंग की लगि गई, ग्रीष्म ऋतु डोली॥
यहाँ नायिका को कोयल की कूक ग्रीष्म ऋतु में प्रिय के आगमन का संकेत देती प्रतीत होती है, पर कवि ने इसे चुटीले अंदाज़ में कहा है।
2. कला-सौन्दर्य
(क) संक्षिप्तता में विस्तार
बिहारी की सबसे अद्वितीय विशेषता उनकी दोहों में भावों की गहराई है। दो पंक्तियों में इतना कुछ कह जाना अत्यंत कठिन कला है।
उदाहरण –
को बड़भागी स्याम-सुंदर एक ही संग।
भ्रमर ज्यों दल सीस बैठि रस पियत अंग॥
यहाँ प्रियतम के साथ रहने का सौभाग्य भ्रमर-कमल की प्रतीक-छवि से उजागर हुआ है।
(ख) बिंब-प्रतीक का सजीव प्रयोग
बिहारी ने प्रकृति, पशु-पक्षी और ऋतु-परिवर्तन को अपने भावों के साथ जोड़ा है।
उदाहरण –
बरसत घटा, घेरि गगन, गरजत घन घोर।
प्रिय बिनु परत न चित्त में, सावन के सब छोर॥
यहाँ सावन का मौसम है, पर प्रिय के बिना सब फीका लग रहा है।
(ग) अलंकार-सौन्दर्य
बिहारी अलंकार-प्रयोग के अद्वितीय शिल्पी हैं। उनके काव्य में उपमा, रूपक, श्लेष, अनुप्रास, यमक का सुंदर मेल मिलता है।
रूपक उदाहरण –
नयन बान, भौंह धनुष, करुन हिय, सान घात।
तन मन धन सब गयो, एक ही पल मं पात॥
यहाँ नायिका के नयन और भौंह को धनुष-बाण रूप में चित्रित किया गया है।
3. भाषा और शैली
- ब्रजभाषा का माधुर्य – बिहारी ने ब्रजभाषा के कोमल और मधुर रूप का पूर्ण उपयोग किया।
- शब्द-संयम – कोई भी शब्द अनावश्यक नहीं, हर शब्द भाव और छवि से जुड़ा है।
- लय और गेयता – दोहे में स्वाभाविक ताल और लय है, जो लोक में गुनगुनाने योग्य बनाता है।
4. नारी-चित्रण
बिहारी की नारी श्रृंगारिक सौन्दर्य की प्रतीक है, पर केवल बाह्य रूप में नहीं। वह चंचल, लज्जाशील, रोषी, प्रेमिल और आत्मगौरव से पूर्ण है।
उदाहरण –
बिनु कहे सब कहि गइ, नैनन की भाखा।
मोहि लाज-संकोच बस, कहि न सकी साखा॥
यहाँ नायिका ने आँखों की भाषा में सब कह दिया, पर लज्जा से वाणी मौन रही।
5. प्रकृति-चित्रण
बिहारी ने ऋतु-चित्रों को भावों से जोड़कर अद्भुत प्रभाव उत्पन्न किया है।
उदाहरण –
फूलीं अमराइ, भँवर, मधुकर, भ्रमित भये।
प्रिय बिनु पावस, पपीहा पिय-पिय कहे॥
यहाँ आम के फूल, भौंरों की गुंजन, पपीहे की पुकार—सब मिलकर विरह का वातावरण बना रहे हैं।
- Read Also:
- रहीम के दोहों का प्रतिपाद्य
6. रीतिकालीन परंपरा और नव्यता
रीतिकाल में अधिकांश कवि राजा-महाराजाओं के दरबार में रहकर श्रृंगार और अलंकार पर केंद्रित रहे। बिहारी भी दरबारी कवि थे, पर उन्होंने केवल भव्यता नहीं रची, बल्कि जीवन की सूक्ष्म भाव-तरंगों को भी व्यक्त किया।
उनके दोहे रीतिकालीन अलंकारवाद और भक्तिकालीन भाव-संवेदना का सुंदर संगम हैं।
7. बिहारी काव्य की विशेषताएँ
- भाव-सघनता – दो पंक्तियों में गहरे भाव।
- चित्रात्मकता – शब्दों से सजीव चित्र उभरते हैं।
- रस-वैविध्य – श्रृंगार के साथ हास्य, करुण और शान्त-रस भी।
- अलंकार-चमत्कार – अलंकार भाव को सजीव करने का साधन।
- भाषा की माधुर्यता – ब्रजभाषा में सहज प्रवाह और कोमलता।
उपसंहार
बिहारी का काव्य-सौन्दर्य संक्षिप्तता में विस्तार, भाव और अलंकार का संतुलन, तथा जीवन-स्पर्श की अद्भुत मिसाल है। उनका काव्य केवल दरबारी मनोरंजन नहीं, बल्कि मानव-मन की संवेदनाओं का कलात्मक दस्तावेज है।
‘बिहारी सतसई’ आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है, जो पाठकों और विद्वानों को एक साथ आनंद और विचार देता है।
- Read Also:
- केशवदास रचित रामचन्द्रिका का भाव सौन्दर्य
FAQs: बिहारी का काव्य-सौन्दर्य
Q1. बिहारी का मुख्य काव्य कौन-सा है?
उत्तर: बिहारी सतसई।
Q2. बिहारी के काव्य में प्रमुख रस कौन-सा है?
उत्तर: श्रृंगार-रस, विशेषकर संयोग और वियोग।
Q3. बिहारी के काव्य में कौन-कौन से अलंकार मिलते हैं?
उत्तर: उपमा, रूपक, श्लेष, अनुप्रास, यमक।
Q4. बिहारी की भाषा कौन-सी है?
उत्तर: ब्रजभाषा।
Q5. बिहारी की काव्य-विशेषता क्या है?
उत्तर: संक्षिप्तता में गहन भाव और अलंकारिक सौन्दर्य।