परिचय
तुलसी साहित्य में सामंत विरोधी मूल्य: हिंदी साहित्य में तुलसीदास का स्थान अद्वितीय है। उनकी रचनाओं ने न केवल भक्ति आंदोलन को गति दी, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आलोचक रामविलास शर्मा ने तुलसी साहित्य का अध्ययन एक सामाजिक दृष्टिकोण से किया और यह स्पष्ट किया कि तुलसीदास के साहित्य में केवल भक्ति या धार्मिक भावनाएँ ही नहीं, बल्कि सामंतवाद विरोधी चेतना भी गहराई से अभिव्यक्त हुई है।
रामविलास शर्मा की आलोचनात्मक दृष्टि
रामविलास शर्मा ने साहित्य को समाज का दर्पण माना। उनका मानना था कि किसी भी रचनाकार के विचार उसके समय के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य से प्रभावित होते हैं। तुलसीदास भले ही भक्ति कवि के रूप में प्रसिद्ध हों, लेकिन उनके काव्य में शोषण, अन्याय और सामंती अत्याचार के विरोध की स्पष्ट धारा मौजूद है।
तुलसी साहित्य में सामंत विरोध के स्वर
तुलसीदास के समय में उत्तर भारत सामंती शोषण, धार्मिक पाखंड और सामाजिक विषमता से ग्रस्त था। इस पृष्ठभूमि में तुलसीदास ने रामकथा के माध्यम से ऐसे आदर्श प्रस्तुत किए, जो न्याय, मर्यादा, करुणा और जनकल्याण पर आधारित थे।
- आदर्श नायक के रूप में राम – तुलसी ने राम को केवल ईश्वर नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय और लोकहितैषी राजा के रूप में चित्रित किया, जो प्रजा के हित में कार्य करता है।
- शोषण का विरोध – तुलसी के काव्य में रावण, खर-दूषण और अन्य असुर सामंती अत्याचार और अहंकार के प्रतीक हैं, जिनका अंत सत्य और धर्म की विजय के रूप में होता है।
- जनसामान्य की आवाज़ – तुलसी ने लोकभाषा में रचनाएँ करके ज्ञान और धर्म को उच्च वर्ग के वर्चस्व से मुक्त कर जन-जन तक पहुँचाया।
रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती ढाँचे की आलोचना
रामविलास शर्मा मानते हैं कि तुलसी साहित्य में सामंत-विरोध सीधे राजनीतिक नारेबाजी के रूप में नहीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीकों और आदर्श चरित्रों के माध्यम से व्यक्त हुआ है।
- उन्होंने बताया कि तुलसी ने समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता को रामराज्य के आदर्श के माध्यम से चुनौती दी।
- सामंती व्यवस्था में शासक वर्ग प्रजा के शोषण में लिप्त था, जबकि तुलसी के राम न्यायप्रिय और प्रजावत्सल हैं।
- तुलसीदास ने लोकमंगल और जनसाधारण के अधिकारों को महत्व देकर सामंती सोच को अप्रत्यक्ष रूप से अस्वीकार किया।
भक्ति आंदोलन और सामाजिक समानता
रामविलास शर्मा के अनुसार तुलसीदास की भक्ति केवल व्यक्तिगत मुक्ति का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और समानता का माध्यम भी थी।
- उन्होंने जातिगत भेदभाव, वर्ण-आधारित श्रेष्ठता और धार्मिक पाखंड का विरोध किया।
- तुलसी की काव्यभाषा अवधी और ब्रज थी, जिससे ग्रामीण और निम्नवर्गीय जनता भी साहित्य से जुड़ सकी।
तुलसी की भाषा और सामंत-विरोधी चेतना
भाषा का लोकतंत्रीकरण, जैसा कि तुलसीदास ने किया, सामंती संस्कृति के विरुद्ध एक सशक्त कदम था। संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषा की जगह उन्होंने जनभाषा में काव्य रचा, जिससे साहित्य का वर्चस्ववादी नियंत्रण टूट गया।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
रामविलास शर्मा का विश्लेषण यह दर्शाता है कि तुलसीदास को केवल धार्मिक कवि मानना उनके साहित्य के सामाजिक पक्ष की उपेक्षा करना होगा। यद्यपि तुलसी ने प्रत्यक्ष राजनीतिक संघर्ष नहीं किया, किंतु उनके आदर्श पात्र, लोकहितकारी दृष्टि और न्यायप्रिय शासन की कल्पना सामंती मूल्यों के विपरीत थी।
- यह भी सच है कि तुलसी ने पूर्ण रूप से सामंती संरचना को नकारा नहीं, बल्कि उसमें नैतिक सुधार की कल्पना की।
- उनके रामराज्य में राजा की सत्ता बनी रहती है, लेकिन वह प्रजा-हित में प्रयुक्त होती है।
निष्कर्ष
रामविलास शर्मा का विचार यह स्थापित करता है कि तुलसी साहित्य केवल भक्ति और धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और सामंती मूल्यों के विरोध का भी वाहक है। तुलसीदास ने लोकभाषा, आदर्श नायक और नैतिक शासन की अवधारणा के माध्यम से जनता को अन्याय और शोषण के खिलाफ प्रेरित किया। इस प्रकार तुलसी साहित्य, रामविलास शर्मा के विश्लेषण में, सामाजिक परिवर्तन और जनजागरण का सशक्त माध्यम बनकर सामने आता है।
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FAQs: तुलसी साहित्य में सामंत विरोधी मूल्य
Q1. रामविलास शर्मा तुलसी साहित्य में सामंत-विरोध को कैसे देखते हैं?
रामविलास शर्मा इसे प्रत्यक्ष राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक आदर्शों के माध्यम से सामंती मूल्यों का विरोध मानते हैं।
Q2. तुलसीदास की रचनाओं में सामंत-विरोध किन रूपों में दिखता है?
रामराज्य की आदर्श कल्पना, शोषण के प्रतीकों का अंत, और लोकभाषा में काव्य-रचना सामंत-विरोध के प्रमुख रूप हैं।
Q3. क्या तुलसीदास ने पूरी तरह सामंती व्यवस्था को अस्वीकार किया?
नहीं, उन्होंने सामंती ढाँचे को नकारा नहीं, बल्कि उसमें नैतिकता और जनहित की स्थापना पर बल दिया।
Q4. तुलसी साहित्य का आधुनिक समाज के लिए क्या महत्व है?
यह न्याय, समानता और लोकहित जैसे मूल्यों को स्थापित करता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।