ईदगाह कहानी में ग्रामीण परिवेश का उल्लास

‘ईदगाह’ कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे ईद के अवसर पर ग्रामीण परिवेश का उल्लास प्रकट होता है।

भूमिका: प्रेमचंद और ग्रामीण भारत

ईदगाह कहानी में ग्रामीण परिवेश का उल्लास: हिंदी साहित्य के शिखर लेखक मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय जनजीवन के विविध रंगों को अपनी कहानियों में जीवंत रूप से प्रस्तुत किया है। उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’, केवल एक बालक हामिद की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत के ग्रामीण समाज, संस्कृति, और लोकजीवन की गहराई से रची-बसी एक भावनात्मक रचना है। ईद के उत्सव को केंद्र में रखकर लेखक ने ग्रामीण जीवन के उल्लास, विश्वास, आपसी सहयोग और पारिवारिक स्नेह का अत्यंत मार्मिक चित्र खींचा है।

1. उत्सव की पूर्व तैयारी: ग्रामीण जीवन की सजीवता

ईदगाह कहानी की शुरुआत ही ग्रामीण परिवेश के उल्लास और सक्रियता से होती है। गांव में ईद के पर्व की तैयारी एक सामूहिक आयोजन बन जाती है। घर-घर में मिठाइयाँ बन रही हैं, नए कपड़े सिलवाए जा रहे हैं और बच्चे उत्साहपूर्वक त्योहार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस तैयारी के दौरान जो वातावरण उभरता है, वह भारतीय गांवों की परंपरागत सामाजिकता और उत्सवी संस्कृति को दर्शाता है।

  • बच्चों में सबसे अधिक उत्साह है। हामिद और उसके मित्रों की बातें, उनकी कल्पनाएं, और भविष्य की योजनाएं इस उत्सव को और भी जीवंत बना देती हैं।
  • गांव की औरतें भी व्यस्त हैं — कोई सेवइयां बना रही है, तो कोई मसाले पीस रही है। रचनाकार ने यह दर्शाया है कि ईद केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक सामूहिक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें गांव का हर वर्ग भाग लेता है।

2. मेले की ओर यात्रा: सामूहिक उल्लास और सौहार्द्र

हामिद और उसके साथी जब मेले की ओर रवाना होते हैं, तो प्रेमचंद ग्रामीण परिवेश में व्याप्त सहकारिता और सामूहिक चेतना को अत्यंत सहज रूप से उकेरते हैं। बच्चे अपने-अपने घरों से निकले, कुछ के पास पैसे हैं, कुछ के पास नहीं — लेकिन फिर भी उत्साह में कोई कमी नहीं।

  • रास्ते में वे एक-दूसरे से हँसी-मजाक करते हैं, गीत गाते हैं और छोटी-छोटी चीज़ों में आनंद ढूंढते हैं। यह उनकी सादा जीवनशैली और मानसिक संतुलन को दर्शाता है।
  • गांव से मेला जाने का दृश्य एक पर्व यात्रा की तरह प्रतीत होता है, जहां सबका उद्देश्य सिर्फ भौतिक सुख नहीं, बल्कि सामाजिक मिलन और आनंद का अनुभव करना है।

3. मेला: ग्रामीण समाज का सांस्कृतिक दर्पण

मेला, प्रेमचंद की कहानी में केवल एक स्थान नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति का जीवंत मंच है। यहां हाट-बाजार है, झूले हैं, खिलौनों की दुकानें हैं, मिठाइयों की गंध है — और इन सबके बीच बालकों का आनंद सर्वोपरि है।

  • झूले पर झूलते बच्चों का दृश्य, मिठाइयों की ओर ललचाई नज़रें, और खिलौनों की दुकानें दर्शाती हैं कि कैसे ग्रामीण बच्चे भी सीमित साधनों में असीम आनंद प्राप्त कर लेते हैं।
  • प्रेमचंद ने बारीकी से यह भी बताया कि किस प्रकार बच्चे अपने सीमित पैसों को सोच-समझकर खर्च करते हैं — कोई गुलाब-जामुन खाता है, कोई खिलौना लेता है, कोई चूड़ी।

4. हामिद की अनूठी सोच: ग्रामीण संस्कारों की मिसाल

हामिद की दादी अमीना के पास धन नहीं है, फिर भी वह हामिद को ईदगाह भेजती है, यह विश्वास दिलाकर कि खुदा उसके साथ है। यह ग्रामीण भारत में धार्मिक आस्था और परिवार की बुनियादी समझ को दर्शाता है। हामिद की सोच, उसका आत्मबल, और उसका परिपक्व निर्णय — यही प्रेमचंद की लेखनी को कालजयी बनाते हैं।

  • मेला में जब सब बच्चे खिलौने, मिठाइयाँ खरीद रहे होते हैं, तब हामिद तीन पैसे में एक चिमटा खरीदता है — ताकि उसकी दादी को रोटियाँ सेंकते वक़्त तकलीफ़ न हो।
  • यह प्रसंग त्योहार के असली उद्देश्य — त्याग, सेवा और स्नेह को दर्शाता है। यह दृश्य ग्रामीण संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों की श्रेष्ठता को रेखांकित करता है।

5. वापसी: गांव की भावना और पारिवारिक बंधन

जब हामिद गांव लौटता है और अपनी दादी को चिमटा भेंट करता है, तो अमीना की आंखों से बहते आंसू यह स्पष्ट करते हैं कि त्योहार का आनंद केवल भोग या विलास में नहीं, बल्कि आपसी स्नेह और समझदारी में निहित है।

  • इस दृश्य में गांव की मातृत्व भावना, पारिवारिक एकता, और भावनात्मक संबंधों की गहराई झलकती है।
  • अमीना का हामिद को गले लगाना, और उस क्षण में उनकी आंखों से झलकता स्नेह, ग्रामीण जीवन की आत्मा को उजागर करता है।

6. कहानी में उल्लास का संकेतक: भाषा और शैली

प्रेमचंद ने इस कहानी में जो भाषा शैली अपनाई है, वह न केवल संवादात्मक है बल्कि भावनात्मक और आत्मीय भी। उनकी सरल और सहज भाषा, पाठक को उस गांव के बीच ला खड़ा करती है जहां हामिद, गोविंद, महमूद और नूरे जैसे पात्र मौजूद हैं।

  • संवादों में स्थानीयता की झलक, उत्सव के माहौल की गर्माहट, और सामाजिक व्यवहार की स्पष्टता इस कहानी को गांव की सांस्कृतिक झांकी में बदल देती है।
  • प्रेमचंद की भाषा में जो देशज शब्द और बोलियों की सुगंध है, वह कहानी को अधिक यथार्थ और प्रभावशाली बनाती है।

निष्कर्ष: ईदगाह कहानी में ग्रामीण परिवेश का उल्लास

‘ईदगाह’ कहानी एक बालक की समझदारी की कहानी भर नहीं है, बल्कि यह प्रेमचंद द्वारा रचित एक ग्राम्य भारत की उत्सवमय आत्मा का दर्पण है। इसमें उल्लास केवल त्योहार मनाने का नहीं, बल्कि संवेदना, त्याग, परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य का है।

यह कहानी बताती है कि उत्सव का असली आनंद स्नेह और सेवा में है, और ग्रामीण जीवन की सुंदरता, उसकी सादगी और गहराई में ही छिपी है।

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