रस (Rasa) – परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

हिंदी साहित्य में रस का वही स्थान है जो शरीर में आत्मा का। रस कविता या साहित्यिक रचना की आत्मा है, जो पाठक या श्रोता के मन में आनंद, रोमांच, करुणा, प्रेम या भय जैसी भावनाओं को जगाता है।

रस के बिना कोई भी रचना पाठक के हृदय को छू नहीं सकती। इसलिए भारत की प्राचीन नाट्यशास्त्रीय परंपरा में “रस” को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

2. रस क्या है? (What is Rasa)

रस का शाब्दिक अर्थ होता है — रसना का विषय, यानी जो मन, आत्मा, हृदय को स्पर्श करे, उसमें भावनाओं का प्रवाह कराए।

“रस वह भाव है जो साहित्य पढ़ते या सुनते समय मन में उत्पन्न होता है और पाठक या श्रोता को आनंद की अनुभूति कराता है।”

उदाहरण के लिए:

  • जब हम प्रेम से भरे गीत सुनते हैं, तो श्रृंगार रस उत्पन्न होता है।
  • वीरता से भरे संवाद वीर रस उत्पन्न करते हैं।
  • वियोग या मृत्यु से जुड़ी रचनाएँ करुण रस का संचार करती हैं।

3. रस की परिभाषा (Definition of Rasa)

“विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से उत्पन्न होने वाला सौंदर्यात्मक आनंद रस कहलाता है।”
भरतमुनि (नाट्यशास्त्र)

4. रस के अंग (Parts of Rasa)

रस के निर्माण में चार मुख्य अंग होते हैं:

1. स्थायी भाव

जो भावना व्यक्ति के भीतर स्थायी रूप से रहती है (प्रेम, भय, क्रोध आदि)। यही रस का बीज होता है।

2. विभाव

भाव को उत्पन्न करने वाले कारण — दो प्रकार के होते हैं:

  • उद्दीपन विभाव (जो भाव को जगाते हैं जैसे: ऋतु, वस्त्र, संगीत आदि)
  • आलंबन विभाव (भाव का आधार जैसे: नायक, नायिका)

3. अनुभाव

वह बाह्य संकेत जो स्थायी भाव को प्रकट करते हैं — जैसे: आँसू आना, पसीना, कंपन, मुख की लाली।

4. संचारी भाव

वे अस्थायी भाव हैं जो मुख्य भाव के साथ चलते हैं — जैसे: लज्जा, आशंका, उदासी आदि।

5. रसों के प्रकार (Types of Rasa)

भरतमुनि ने मूलतः 8 रस बताए थे, बाद में आनंदवर्धन और आचार्य मम्मट ने 9वाँ (शांत रस) और आधुनिक विद्वानों ने 10वाँ (भक्ति रस) जोड़ा।

रस का नामस्थायी भावरंगदेवता
1. श्रृंगार रसरति (प्रेम)श्यामविष्णु
2. हास्य रसहास (हँसी)श्वेतप्रपंच
3. करुण रसशोकनीलायम
4. रौद्र रसक्रोधलालरुद्र
5. वीर रसउत्साहगेरुआइन्द्र
6. भयानक रसभयकालाकाल
7. वीभत्स रसघृणाधूसरमहाकाल
8. अद्भुत रसआश्चर्यपीलाब्रह्मा
9. शांत रसनिर्वेदधवलशिव
10. भक्ति रसश्रद्धाकेसरियानारायण

1. श्रृंगार रस (Shringaar Rasa)

स्थायी भाव: रति (प्रेम)
रंग: श्याम
देवता: विष्णु

श्रृंगार रस में प्रेम, सौंदर्य, अनुराग, मिलन-विरह, साज-सज्जा, सौंदर्य दर्शन, नायक-नायिका का आकर्षण आदि भावों की प्रधानता होती है। यह रस दो प्रकार का होता है:

  • संयोग श्रृंगार: प्रेमियों का मिलन
  • विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की स्थिति

उदाहरण:

  1. कमल से नयन, केश घटा-से, अधर पान-से प्यारे।
  2. उसकी मुस्कान से सवेरा हो गया।
  3. नायक ने नायिका की चूड़ियों से बात की।
  4. आँखों से आँखें मिलीं और वक्त थम गया।
  5. झील-सी गहराई लिए वह आँखें सब कुछ कह गईं।
  6. नायिका ने पायल बाँध ली, नायक का दिल बंध गया।
  7. चंद्रमा शर्माए, जब तू मुस्काए।
  8. तुम्हारी बातों में बसंत का जादू है।
  9. मिलन की वह पहली रात, अब तक सांसों में है।
  10. विरह में नायिका ने श्रृंगार भी छोड़ दिया।
  11. तुम आए तो फूल महक उठे।
  12. उसका स्पर्श जैसे ठंडी हवा की लहर।
  13. नायक की राह तकती हुई वह खिड़की हर दिन रोती है।
  14. मिलन के क्षणों में जीवन थम जाता है।
  15. प्रेम की वो पहली बारिश, अब तक भीतर भीगती है।
  16. नायिका के तन पर सावन झूम रहा था।

2. हास्य रस (Hasya Rasa)

स्थायी भाव: हास
रंग: श्वेत
देवता: प्रपंच

जब किसी बात या क्रिया से मन में हँसी, विनोद या व्यंग्य की भावना उत्पन्न हो, वहाँ हास्य रस होता है।

उदाहरण:

  1. मोटा आदमी दरवाज़े में फँस गया।
  2. कवि मंच पर गिर पड़ा और दर्शक ताली बजाते रहे।
  3. लड़की ने पूछा — ‘पंखा गर्मी देता है क्या?’
  4. छात्र बोला — ‘पढ़ते-पढ़ते नींद आती है, इसलिए सोता हूँ।’
  5. दूल्हा भूल गया कि दुल्हन कौन है।
  6. कवि सम्मेलन में कवि खुद हँसी के पात्र बन गए।
  7. शिक्षक ने कहा — ‘सही उत्तर तो किताब में भी नहीं है।’
  8. शेर से डरकर आदमी बकरी की पीठ पर चढ़ गया।
  9. वह इतना मोटा है कि सीढ़ी देखकर लिफ्ट बुलाता है।
  10. लड़की ने आईने से पूछा — “तू ही बता, सबसे सुंदर कौन?”
  11. गधा आईफोन लेकर कॉल करने लगा।
  12. कवि ने कविता में रावण को रोमांटिक बना दिया।
  13. पति बोला — “तू बोलती है, इसलिए घर में शांति है।”
  14. शादी में डीजे पर दादी सबसे पहले नाची।
  15. मुर्गा बोला — ‘कुकरू कूं’ और आदमी ने रिंगटोन समझकर फोन ढूंढा।

3. करुण रस (Karun Rasa)

स्थायी भाव: शोक
रंग: नीला
देवता: यम

जब कोई दृश्य दुःख, पीड़ा, वियोग, मृत्यु या करुणा की भावना को उत्पन्न करता है, तो करुण रस होता है।

उदाहरण:

  1. वह माँ, जो बेटे के शव पर बिलख रही थी।
  2. भिखारी ठंड में सिकुड़कर काँप रहा था।
  3. बच्चे का भूखा चेहरा देखकर आँसू निकल आए।
  4. वृद्ध पिता को बेटा वृद्धाश्रम छोड़ आया।
  5. विधवा स्त्री की आँखें सूनी थीं।
  6. सैनिक का शव तिरंगे में लिपटा था।
  7. लड़की ने सपना देखा, और सुबह उसका रिश्ता टूट गया।
  8. वियोग में प्रेमिका ने अपने बाल काट लिए।
  9. पशु मरते गए और लोग तमाशा देखते रहे।
  10. गरीब माँ ने दूध के बदले पानी पिलाया।
  11. अनाथ बच्चे मंदिर के बाहर सो गए।
  12. किसान कर्ज़ से तंग आकर पेड़ से लटक गया।
  13. बेटी को विदा करते पिता फूट-फूटकर रोया।
  14. बूढ़ी माँ बेटे की शादी में अकेली बैठी रही।
  15. जले घर की राख को वह घंटों देखता रहा।

आइए अब हम शेष रसों को भी 15+ उदाहरणों सहित विस्तार से प्रस्तुत करते हैं।

4. रौद्र रस (Raudra Rasa)

स्थायी भाव: क्रोध
रंग: लाल
देवता: रुद्र

जब किसी रचना में क्रोध, युद्ध, प्रतिशोध, घृणा, या अत्यधिक आक्रोश का प्रदर्शन होता है, तो वहाँ रौद्र रस होता है।

उदाहरण:

  1. लक्ष्मण ने रावण के पुत्र को क्रोध में मार डाला।
  2. दुर्गा माँ ने महिषासुर का वध किया।
  3. भीम ने दुःशासन की छाती चीर डाली।
  4. क्रोधित राम ने समुद्र पर धनुष उठाया।
  5. कर्ण का अपमान सुन अर्जुन आगबबूला हो गया।
  6. रणभूमि में वीरों के चेहरे क्रोध से तप रहे थे।
  7. गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह रच डाला।
  8. शिव का तांडव सब कुछ विनष्ट कर गया।
  9. अंगद ने सभा में पैर जमाकर सबको चैलेंज किया।
  10. सती के जलने पर शिव ने विनाश कर दिया।
  11. हनुमान ने अशोक वाटिका जला दी।
  12. स्त्री की मर्यादा का अपमान देख लक्ष्मण आग बबूला हुआ।
  13. रावण का हँसता चेहरा युद्ध में डर का कारण बन गया।
  14. वीरों की आँखों से लहू टपकने लगा।
  15. क्षत्रियों के स्वाभिमान को चुनौती देना महाविनाश का कारण बनता है।

5. वीर रस (Veer Rasa)

स्थायी भाव: उत्साह
रंग: गेरुआ
देवता: इंद्र

जब किसी काव्य में वीरता, पराक्रम, साहस, आत्मबलिदान, देशभक्ति आदि भावों की प्रधानता हो, वहाँ वीर रस होता है।

उदाहरण:

  1. “चलो दिल्ली!” – नेताजी सुभाष चंद्र बोस
  2. भगत सिंह हँसते-हँसते फाँसी चढ़ गए।
  3. महाराणा प्रताप ने भूखे रहकर भी मुगलों से युद्ध किया।
  4. झाँसी की रानी अकेले अंग्रेज़ों से भिड़ गईं।
  5. गुरु गोबिंद सिंह ने चार पुत्र बलिदान कर दिए।
  6. शिवाजी ने औरंगज़ेब को चुनौती दी।
  7. एक सिपाही ने अकेले 40 दुश्मनों को मार गिराया।
  8. कारगिल के युद्ध में जवानों ने हँसते-हँसते जान दी।
  9. “मैं तिरंगे में लिपट कर आऊँगा” – कैप्टन विक्रम बत्रा
  10. सीमा पर खड़ा जवान सबसे बड़ा भक्त है।
  11. जब तलवारें बोलती हैं, तब वीर मौन रहते हैं।
  12. सैनिक की लाठी भी बंदूक से कम नहीं होती।
  13. मरते दम तक देश के लिए लड़ता रहा।
  14. माँ ने बेटे को युद्धभूमि के लिए विदा किया।
  15. कश्मीर की घाटियों में वीरों का लहू बहा।

6. भयानक रस (Bhayanak Rasa)

स्थायी भाव: भय
रंग: काला
देवता: काल

जब किसी दृश्य में डर, भय, आतंक या कंपकंपी की भावना उत्पन्न हो, वहाँ भयानक रस होता है।

उदाहरण:

  1. अंधेरे में पत्तों की सरसराहट डराने लगी।
  2. वह रात सन्नाटे से भी डरावनी थी।
  3. श्मशान की चुप्पी चीख बन गई।
  4. भूत की परछाईं खिड़की पर मंडराने लगी।
  5. सुनसान महल में कोई चीख रहा था।
  6. काले कपड़ों में साया पास आता गया।
  7. राक्षस का विकराल रूप देख लोग काँप गए।
  8. तूफान के साथ वह घर हिलने लगा।
  9. बच्चा अंधेरे में काँप रहा था।
  10. उस बगुला भक्ति वाले तांत्रिक की हँसी डरावनी थी।
  11. घड़ी रात के 12 बजा चुकी थी, और दरवाज़ा खुला।
  12. चेहरों के बिना शरीर घूमते देखे गए।
  13. खून से सना कमरा और टूटी खिड़की डरावनी थी।
  14. तालाब में अचानक हाथ उभरा।
  15. वह सपना नहीं, सच्चाई थी — डरावनी!

7. वीभत्स रस (Vibhats Rasa)

स्थायी भाव: घृणा
रंग: धूसर
देवता: महाकाल

जब किसी बात से घृणा, विकर्षण या अरुचिकर भावना पैदा हो, वहाँ वीभत्स रस होता है।

उदाहरण:

  1. गंदे नाले से बदबू आ रही थी।
  2. कचरे के ढेर में जानवर खाने को लड़ रहे थे।
  3. लाश सड़ चुकी थी, और मक्खियाँ उड़ रही थीं।
  4. शव के टुकड़े कटे पड़े थे।
  5. सड़े अंडे जैसी बदबू से सब उल्टी करने लगे।
  6. बीमार आदमी के फोड़े फूट रहे थे।
  7. मरे चूहे की गंध पूरे घर में फैल गई थी।
  8. कुत्ते लाश चबा रहे थे।
  9. गटर का पानी सड़क पर बह रहा था।
  10. भूखे आदमी ने जूठन खा ली।
  11. किसी ने खून से सनी साड़ी पहन ली।
  12. बासी भोजन से कीड़े रेंग रहे थे।
  13. बच्चे के जले अंग देख रूह काँप गई।
  14. शरीर से कीड़े गिरने लगे थे।
  15. विकृत चेहरा देख आँखें फेरनी पड़ीं।

8. अद्भुत रस (Adbhut Rasa)

स्थायी भाव: आश्चर्य
रंग: पीला
देवता: ब्रह्मा

जब कोई दृश्य चमत्कारिक, रहस्यमय या विस्मयकारी हो, तब अद्भुत रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण:

  1. बिना पंख के पक्षी उड़ने लगा।
  2. अंधे ने चित्र बना दिया।
  3. लंगड़ा व्यक्ति नाचने लगा।
  4. सूर्य पश्चिम से उग आया।
  5. वह फूल बोलने लगा।
  6. बंद आँखों से उसने भविष्य देख लिया।
  7. तालाब के बीचोंबीच मंदिर उभर आया।
  8. मूर्ति ने आँखें खोलीं।
  9. पत्थर पर पाँव पड़ा और सोना बन गया।
  10. चमत्कारी झरने ने बीमार को ठीक कर दिया।
  11. किताबें बिना पढ़े याद हो गईं।
  12. समय उल्टा चलने लगा।
  13. बिना लाठी के अंधा रास्ता पहचानने लगा।
  14. पेड़ ने फल नहीं दिए, पर छाया दी।
  15. सपना हकीकत बन गया।

9. शांत रस (Shant Rasa)

स्थायी भाव: निर्वेद
रंग: धवल
देवता: शिव

जब किसी रचना में वैराग्य, संतोष, तटस्थता और आत्मशांति का अनुभव हो, वहाँ शांत रस होता है।

उदाहरण:

  1. संत तट पर ध्यानमग्न बैठे हैं।
  2. मृत्यु के बाद भी मुस्कराते चेहरे।
  3. जीवन की व्यर्थता को समझना ही ज्ञान है।
  4. सब कुछ छोड़कर एक साधु हिमालय की ओर चल पड़ा।
  5. बंधनों से मुक्ति ही सच्ची आज़ादी है।
  6. अंतर्मन में सन्नाटा ही सुख है।
  7. वाणी मौन हुई, पर आत्मा बोल उठी।
  8. सब कुछ होते हुए भी कुछ पाने की इच्छा नहीं।
  9. वासना के बिना जीवन सरल होता है।
  10. योगी को न तृष्णा है, न मोह।
  11. जब भीतर का शोर शांत होता है, तभी आत्मा बोलती है।
  12. सत्य की खोज तटस्थता से ही संभव है।
  13. जन्म और मृत्यु के बीच जो मौन है, वही शांत रस है।
  14. आँधियों में भी स्थिर रहने वाला संत।
  15. भीतर की दीपशिखा में स्थायित्व है।

10. भक्ति रस (Bhakti Rasa – आधुनिक)

स्थायी भाव: श्रद्धा
रंग: केसरिया
देवता: नारायण

जब किसी रचना में ईश्वर के प्रति समर्पण, प्रेम, भक्ति और विश्वास हो, वहाँ भक्ति रस होता है।

उदाहरण:

  1. मीरा ने गिरधर को पति माना।
  2. तुलसीदास की कविता में राम बसे हैं।
  3. सूरदास की आँखें बंद थीं, पर कृष्ण दिखते थे।
  4. कबीर की वाणी में ईश्वर की महिमा थी।
  5. “सब ते साईं बड़ा” – नानक ने कहा।
  6. “हरि बिनु और न दूजा कोई।”
  7. रो-रो कर नाम जपती रही राधा।
  8. “जो माँगे ठाकुर अपने से, सोई सोई देत।”
  9. अंधे को भी द्वारिका दिखी कृष्ण कृपा से।
  10. संत एक पैर पर खड़े रहकर नाम जपते रहे।
  11. वाणी में राम, श्वासों में राम।
  12. “रघुपति राघव राजा राम…” सुनकर मन पिघल गया।
  13. वह मंदिर में गया और भीतर खो गया।
  14. कृष्ण की मुरली में गोपियाँ बाँध ली गईं।
  15. “भज गोविंदम्… भज गोविंदम्…” सुनकर जीवन बदल गया।

निष्कर्ष (Conclusion)

रस, हिंदी साहित्य की आत्मा है। यह पाठक या श्रोता के हृदय को गहराई से स्पर्श करता है और उसके मन में आनंद, प्रेम, पीड़ा, वीरता, भय या भक्ति जैसी भावनाओं की सजीव अनुभूति कराता है।
भरतमुनि ने रसों की नींव रखी और आगे के आचार्यों ने इसे परिपक्वता दी।

रसों की यह संरचना न केवल कवियों के लिए मार्गदर्शक है, बल्कि किसी भी रचना को आत्मा देने का साधन भी है। आज के युग में भले ही माध्यम बदल गए हों, लेकिन भावनाओं की शक्ति आज भी रसों के माध्यम से साहित्य में प्रवाहित होती रहती है।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. रस क्या है?

उत्तर: रस वह भावनात्मक आनंद है, जो किसी साहित्यिक रचना को पढ़ने या सुनने पर पाठक के मन में उत्पन्न होता है।

Q2. रसों के कितने प्रकार होते हैं?

उत्तर: रसों के कुल 10 प्रकार माने जाते हैं: श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत और भक्ति (आधुनिक जोड़)।

Q3. रस के कितने अंग होते हैं?

उत्तर: रस के चार अंग होते हैं — स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव

Q4. श्रृंगार रस और करुण रस में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • श्रृंगार रस में प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण आदि भाव होते हैं।
  • करुण रस में दुःख, शोक, वियोग आदि की प्रधानता होती है।
Q5. भक्ति रस क्या है?

उत्तर: भक्ति रस में ईश्वर के प्रति श्रद्धा, प्रेम, समर्पण और विश्वास का भाव होता है। यह आधुनिक युग में रसों में जोड़ा गया है।

Q6. सबसे अधिक प्रयोग होने वाला रस कौन-सा है?

उत्तर: श्रृंगार रस साहित्य में सबसे व्यापक और लोकप्रिय रूप से प्रयुक्त होता है।

Q7. क्या एक ही कविता में एक से अधिक रस हो सकते हैं?

उत्तर: हाँ, एक कविता में मुख्य रस के साथ गौण रस भी हो सकते हैं, लेकिन केवल एक रस ही प्रधान माना जाता है।

Q8. रसों का प्रयोग केवल काव्य में होता है या गद्य में भी?

उत्तर: रसों का प्रयोग कविता और गद्य दोनों में होता है, जहाँ भावनात्मक अभिव्यक्ति होती है।

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