अरस्तू का त्रासदी विवेचन

अरस्तू का त्रासदी विवेचन: त्रासदी (Tragedy) साहित्य की वह विधा है जिसमें नायक के जीवन का चरम उत्थान से पतन की ओर जाना दर्शाया जाता है। पश्चिमी साहित्य में त्रासदी की परिभाषा और अवधारणा का व्यवस्थित विवेचन सर्वप्रथम अरस्तू (Aristotle) ने किया था। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ “पोएटिक्स” (Poetics) में त्रासदी की अवधारणा का सूक्ष्म एवं विस्तृत विवेचन मिलता है।

अरस्तू की त्रासदी अवधारणा क्या है?

अरस्तू ने त्रासदी की परिभाषा स्पष्ट शब्दों में दी है:

“त्रासदी उच्च कोटि के चरित्रों के ऐसे अनुकरण (नकल) का नाम है, जिसका उद्देश्य मनुष्य में भय और करुणा जैसे भावों को जागृत कर उसे कैथार्सिस (भाव-विरेचन) प्रदान करना है।”

अरस्तू ने त्रासदी के छः प्रमुख तत्व बताए हैं—कथानक, चरित्र-चित्रण, विचार, कथोपकथन, दृश्य और गीत-संगीत। इनमें से उन्होंने कथानक को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना है।

कथानक का महत्व (Plot Importance)

अरस्तू ने स्पष्ट कहा कि कथानक त्रासदी की आत्मा है। कथानक ही वह मूल ढाँचा है, जिसके माध्यम से त्रासदी के नायक का उत्कर्ष से पतन की ओर सफर तय होता है। अरस्तू के अनुसार, त्रासदी में कथानक को तार्किक, संगठित और सुसम्बद्ध होना चाहिए, जिससे दर्शक कहानी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ सके।

त्रासद नायक और हैमार्शिया (Tragic Hero and Hamartia)

त्रासद नायक वह होता है, जो न अत्यंत अच्छा हो और न अत्यंत बुरा, बल्कि सामान्य मानवीय दुर्बलताओं से युक्त हो। अरस्तू के अनुसार, त्रासदी का नायक अपने भीतर की किसी त्रुटि या “हैमार्शिया” (Hamartia) के कारण दुखद अंत का शिकार बनता है। यह त्रुटि अक्सर अहंकार, महत्वाकांक्षा, अथवा असावधानी होती है, जो उसे विपत्ति की ओर ले जाती है।

कैथार्सिस (Catharsis): त्रासदी का उद्देश्य

अरस्तू की त्रासदी-विचारधारा में कैथार्सिस या भाव-विरेचन त्रासदी का मूल उद्देश्य है। कैथार्सिस का अर्थ है—भय और करुणा जैसे भावों के माध्यम से मनुष्य के मन की शुद्धि करना। जब दर्शक त्रासदी के माध्यम से इन भावों का अनुभव करता है, तब उसकी आत्मा में एक प्रकार की पवित्रता और शांति का अनुभव होता है।

त्रासदी के तीन एकत्व (Three Unities)

अरस्तू ने त्रासदी की रचना हेतु तीन महत्वपूर्ण नियम दिए हैं:

  • समय का एकत्व (Unity of Time) – त्रासदी की घटना एक सीमित अवधि में घटित होनी चाहिए।
  • स्थान का एकत्व (Unity of Place) – घटनाएँ एक ही स्थान पर घटित हों, जिससे कहानी का तारतम्य न टूटे।
  • कार्य का एकत्व (Unity of Action) – कथा में केवल एक ही कथानक हो, जिससे दर्शकों का ध्यान भटकने न पाए।

अरस्तू की त्रासदी-विचारधारा का प्रभाव

अरस्तू की त्रासदी-विचारधारा पश्चिमी ही नहीं, बल्कि विश्व के सम्पूर्ण साहित्य को प्रभावित करती है। यूनानी त्रासदीकारों (सोफोक्लीज़, यूरिपिडीज़ आदि) से लेकर आधुनिक त्रासदी तक—अरस्तू के सिद्धांतों का प्रयोग व्यापक रूप से होता रहा है। शेक्सपियर की त्रासदियों (जैसे हैमलेट, मैकबेथ आदि) में भी अरस्तू के त्रासदी के सिद्धांत की स्पष्ट झलक मिलती है।

अरस्तू की त्रासदी अवधारणा की आलोचना

कुछ आलोचकों ने अरस्तू के त्रासदी सिद्धांत की सीमाओं को भी इंगित किया है। उदाहरण के लिए, आधुनिक आलोचक त्रासदी में आम व्यक्ति के चरित्र को भी महत्त्व देते हैं, जबकि अरस्तू केवल उच्च वर्ग के चरित्रों पर ही बल देते थे। इसके अतिरिक्त, आधुनिक त्रासदी में अरस्तू के तीनों एकत्वों का सख्ती से पालन भी आवश्यक नहीं माना जाता।

निष्कर्ष

अरस्तू का त्रासदी विवेचन साहित्य के इतिहास में महत्त्वपूर्ण और स्थायी है। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए त्रासदी के सिद्धांतों का महत्व आज भी बना हुआ है। त्रासदी के माध्यम से उन्होंने मानवीय मूल्यों, भावनाओं और नैतिकता के गहरे अर्थों को प्रकट किया। अरस्तू की त्रासदी अवधारणा न केवल साहित्य की दृष्टि से बल्कि दार्शनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बनी हुई है।

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FAQs:

  1. अरस्तू के अनुसार त्रासदी क्या है?
    त्रासदी उच्च चरित्रों के अनुकरण द्वारा भय और करुणा जैसे भावों को जगाकर कैथार्सिस तक ले जाती है।
  2. हैमार्शिया का अर्थ क्या है?
    त्रासद नायक की ऐसी त्रुटि या दुर्बलता जिससे उसका पतन होता है।
  3. कैथार्सिस का क्या महत्व है?
    कैथार्सिस भावों की शुद्धि और मनुष्य की आत्मिक पवित्रता के लिए आवश्यक है।
  4. अरस्तू ने त्रासदी के कितने तत्व बताए हैं?
    अरस्तू के अनुसार त्रासदी के छः मुख्य तत्व हैं—कथानक, चरित्र-चित्रण, विचार, कथोपकथन, दृश्य और गीत-संगीत।
  5. त्रासदी के तीन एकत्व क्या हैं?
    त्रासदी के तीन एकत्व हैं—समय का एकत्व, स्थान का एकत्व और कार्य का एकत्व।

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