राम की शक्ति पूजा में कवि निराला का आत्मसंघर्ष: राम की शक्ति पूजा निराला की अमर रचना है, जिसमें नायक राम के माध्यम से कवि ने अपने गहन आत्मसंघर्ष, सामाजिक यथार्थ और आत्मचिंतन की गाथा कही है। यह केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि एक दार्शनिक-मानवतावादी दस्तावेज़ है जिसमें कवि के भीतर का विद्रोही, संदेहशील, भक्त और तर्कशील मानस एक साथ मुखर होता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे “राम की शक्ति पूजा” में निराला का आत्मसंघर्ष साहित्य और दर्शन के पटल पर एक युगांतकारी घटना बनता है।
आत्मसंघर्ष का आरंभ: परंपरा और विद्रोह के बीच द्वंद्व
निराला का आत्मसंघर्ष उस क्षण से आरंभ होता है जब वे पारंपरिक धर्म और उसकी स्थापना से उपजी रूढ़ियों को प्रश्नों के कटघरे में लाते हैं। राम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाते हैं, जब शक्ति की आराधना करने को बाध्य होते हैं, तब कवि स्वयं अपने आस्थागत ढांचे की सीमाओं से टकराता है।
निराला ने स्वयं को राम के भीतर प्रतिस्थापित कर एक गहरे आत्ममंथन का मंच तैयार किया है। राम का संदेह, उनका आत्मपरीक्षण, शक्ति की उपासना में उनका आत्मसमर्पण—यह सब निराला के अंतरगत चल रही चेतना का प्रतीक है।
आत्मा का द्वंद्व: तर्क और श्रद्धा की टकराहट
राम के स्वरूप में निराला केवल एक धार्मिक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ऐसा मनुष्य रचते हैं जो यथार्थ को तर्क की कसौटी पर परखना चाहता है। राम का आत्मसंघर्ष इस बात से उपजता है कि क्या केवल शस्त्रबल से विजय संभव है या फिर दैवी शक्ति की अनुकंपा आवश्यक है?
यह द्वंद्व केवल राम का नहीं, बल्कि कवि का भी है। वह अपने युग की शक्तियों—सामंतवाद, उपनिवेशवाद, सामाजिक शोषण—से लड़ना चाहता है, परंतु उसे समझ नहीं आता कि क्या केवल मानवीय प्रयास पर्याप्त होंगे, या कोई आध्यात्मिक शक्ति भी चाहिए।
आत्मचिंतन की गहराइयाँ: एकांत, असमंजस और संकल्प
शक्ति पूजा के पूर्व राम एकांत में जाते हैं। यही वह क्षण है जब निराला का आत्मसंघर्ष चरम पर पहुँचता है। राम स्वयं से प्रश्न करते हैं:
“क्या मैं युद्ध के योग्य हूँ?
क्या मेरे प्रयास ही पर्याप्त होंगे?”
यहाँ कवि निराला का मन भी संदेहों से घिरा हुआ है। वे अपने वैचारिक निर्णयों, अपने विद्रोह, अपने नवाचार को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। आत्मचिंतन की यह प्रक्रिया उन्हें उस स्तर तक पहुँचाती है जहाँ वे अपने भीतर की सभी परतों को खोलते हैं।
राम का आत्मसंघर्ष = निराला का आत्मकथ्य
“राम की शक्ति पूजा” की सबसे गूढ़ विशेषता यह है कि इसमें कवि का आत्मसंघर्ष प्रतीकात्मक रूप से राम के संघर्ष में रूपायित होता है। राम द्वारा शक्ति की पूजा करना दरअसल निराला का उस ‘शक्ति’ से संवाद है जिसे वे सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक मानते हैं।
यह शक्ति केवल देवी नहीं, बल्कि वह ऊर्जा है जो समाज को बदल सकती है। राम द्वारा दस दिन की साधना, निराला की साधना का प्रतीक है—एक साहित्यकार की साधना जो समाज के लिए लिखता है, लिखते-लिखते समाज की पीड़ा को अपने भीतर समाहित कर लेता है।
दर्शन और आत्मसंघर्ष: सांख्य से लेकर वेदांत तक
कविता में दर्शन का जो तानाबाना बुना गया है, वह कवि के आत्मसंघर्ष को दार्शनिक ऊँचाई देता है। राम का प्रकृति के साथ संवाद, नारी-शक्ति के प्रति उनकी श्रद्धा, और अपने संदेहों का साहसपूर्वक सामना—यह सब सांख्य, योग और वेदांत के गूढ़ तत्वों से जुड़ा है।
निराला यहाँ राम को ‘भविष्य का पुरुष’ बनाते हैं—वह पुरुष जो तर्कशील है, जो अपने भ्रमों को स्वीकार करता है, और फिर एक नए आदर्श की ओर अग्रसर होता है।
सामाजिक चेतना और आत्मसंघर्ष का समन्वय
कवि का आत्मसंघर्ष केवल दार्शनिक नहीं, सामाजिक भी है। उनका मन सामंती व्यवस्था, जातिवाद, स्त्री-दमन जैसे मुद्दों से जूझ रहा है। जब राम शक्ति की पूजा करते हैं, वह दृश्य दरअसल उस चेतना का प्रतीक है जहाँ पुरुष सत्ता नारी सत्ता के सामने झुकती है। यह नारीवाद की वह चेतना है जिसे निराला गहरे आत्मसंघर्ष के बाद आत्मसात करते हैं।
आत्मविजय: संघर्ष के बाद की शांति
पूजा के अंतिम दिन राम को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह घटना एक प्रतीक है—कवि को अब अपने भीतर की शक्तियों पर विश्वास हो गया है। वे जान गए हैं कि संदेह और आत्ममंथन के बाद जो संकल्प आता है, वही सबसे स्थायी होता है।
राम की शक्ति पूजा का यह अंत ही निराला के आत्मसंघर्ष की परिणति है—एक ऐसा कवि जो भीतर से टूटता है, बिखरता है, फिर एक नई चेतना के साथ खड़ा होता है।
निष्कर्ष: क्यों यह कविता आज भी प्रासंगिक है?
आज के युग में जब व्यक्ति धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत संकटों से जूझ रहा है, “राम की शक्ति पूजा” एक आईना है—वह आत्मसंघर्ष का आईना जो हर जागरूक व्यक्ति के भीतर घटित होता है। निराला का आत्मसंघर्ष केवल उनका नहीं, हमारी समकालीन चेतना का संघर्ष है।
Read Also:
भक्तिकाल के उदय की पृष्ठभूमि और अखिल भारतीय स्वरूप
महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचना-दृष्टि
मुक्तिबोध की आलोचना दृष्टि
FAQs
1.राम की शक्ति पूजा में आत्मसंघर्ष का प्रमुख कारण क्या है?
राम (और उनके माध्यम से कवि निराला) का आत्मसंघर्ष पारंपरिक धर्म और नवीन चेतना के द्वंद्व से उत्पन्न होता है। वे तर्क और श्रद्धा, पुरुषत्व और मातृत्व, कर्म और दैवी शक्ति के बीच संतुलन स्थापित करना चाहते हैं।
2.क्या यह आत्मसंघर्ष केवल धार्मिक है?
नहीं, यह धार्मिक से अधिक दार्शनिक, सामाजिक और वैचारिक संघर्ष है। कवि स्वयं के साथ, अपने विचारों के साथ और यथार्थ से भी जूझ रहा है।
3.राम के रूप में कवि का आत्मविमर्श कैसे प्रकट होता है?
राम की एकांत साधना और शक्ति की आराधना में कवि का आत्मविमर्श स्पष्ट होता है। ये दृश्य निराला के भीतर चल रही विचार प्रक्रिया को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करते हैं।
4.कविता में आत्मविजय किस रूप में दर्शाई गई है?
राम को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो इस बात का संकेत है कि आत्मसंघर्ष के बाद सच्ची चेतना प्राप्त होती है। यह आत्मविजय आत्मबोध की चरम अवस्था है।