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हिंदी भाषा का उद्भव और विकास

हिंदी भाषा का उद्भव और विकास

 

हिंदी भाषा का उद्भव और विकास

                                                                       हिंदी भाषा का उद्भव और विकास

 

किसी भी भाषा के उद्भव और विकास का अध्ययन वास्तव में उस भाषा के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के साथ जुड़ा होता है। हिंदी भाषा आज भारत ही नहीं, बल्कि विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। इसका विकास हजारों वर्षों के दौरान क्रमशः संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश से होते हुए वर्तमान स्वरूप तक पहुंचा है। हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की कहानी अत्यंत रोचक एवं समृद्ध रही है, जो अनेक ऐतिहासिक बदलावों, विदेशी आक्रमणों, सांस्कृतिक समागमों एवं स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही है।

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1. हिंदी भाषा का उद्भव

हिंदी भाषा का उद्भव भारतीय-आर्य भाषा परिवार से माना जाता है। हिंदी, एक इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार की सदस्य है जिसका स्रोत संस्कृत माना जाता है। संस्कृत से ही प्राकृत भाषाएँ निकलीं और प्राकृत से अपभ्रंश भाषाओं का विकास हुआ। लगभग 7वीं-8वीं सदी तक आते-आते अपभ्रंशों के कई क्षेत्रीय स्वरूप उभरे, जिनमें से एक स्वरूप ‘शौरसेनी अपभ्रंश’ था, जो हिंदी भाषा का पूर्वज माना जाता है।


2. हिंदी भाषा के विकास के चरण

हिंदी भाषा का विकास मुख्यतः तीन प्रमुख चरणों में हुआ है:

(क) प्राचीन चरण (7वीं से 10वीं सदी)

इस काल में संस्कृत के प्रभाव से प्राकृतों और अपभ्रंशों का विकास हुआ। अपभ्रंश भाषाओं में साहित्य रचना प्रारंभ हुई। इस युग में सिद्ध, नाथ एवं जैन साहित्य की भाषा अपभ्रंश थी। ‘पउमचरिउ’ (पद्मचरित) जैसी रचनाएँ अपभ्रंश के प्रारंभिक साहित्य का महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।

(ख) मध्यकालीन चरण (11वीं से 18वीं सदी)

इस काल में हिंदी भाषा को वास्तविक पहचान मिली। हिंदी के आदिकाल (11वीं से 14वीं सदी), भक्तिकाल (15वीं से 17वीं सदी) और रीतिकाल (17वीं से 18वीं सदी) इसी चरण के भीतर आते हैं।

आदिकाल (11वीं–14वीं शताब्दी):

आदिकाल में हिंदी की उत्पत्ति अपभ्रंशों से स्पष्ट रूप से हुई। इस युग की रचनाएँ मुख्यतः वीरगाथा काल के नाम से प्रसिद्ध हैं। ‘पृथ्वीराज रासो’ (चंद बरदाई), ‘खुमाण रासो’, ‘बीसलदेव रासो’ आदि प्रमुख रचनाएँ हैं। यह भाषा मिश्रित एवं अपभ्रंश से जुड़ी हुई थी।

भक्तिकाल (15वीं–17वीं शताब्दी):

भक्तिकाल हिंदी भाषा के विकास का स्वर्ण युग माना जाता है। इसी काल में हिंदी की अनेक बोलियों, जैसे ब्रज, अवधी, मैथिली आदि में साहित्य रचना चरम पर पहुँची। तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ (अवधी), सूरदास के ‘सूरसागर’ (ब्रज), जायसी की ‘पद्मावत’ (अवधी), कबीर के ‘साखी’, ‘बीजक’ आदि प्रमुख कृतियाँ इसी काल की देन हैं। इन कृतियों ने हिंदी के विकास और लोकप्रियता में अभूतपूर्व योगदान दिया।

रीतिकाल (17वीं–18वीं शताब्दी):

रीतिकाल मुख्यतः ब्रज भाषा और श्रृंगार रस की प्रधानता वाला काल था। बिहारी की ‘सतसई’, केशवदास का ‘कविप्रिया’, देव का ‘रसविलास’ जैसी रचनाओं ने भाषा की परिष्कृत शैली को जन्म दिया।

(ग) आधुनिक काल (19वीं सदी से अब तक)

आधुनिक हिंदी का विकास ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में हुआ। इसी समय हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा मिली। 19वीं सदी के दौरान हिंदी का स्वरूप परिष्कृत एवं परिमार्जित हुआ और खड़ी बोली हिंदी का आधार बनी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885) को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। उनके साथ ही हिंदी की गद्य विधाओं का समुचित विकास प्रारंभ हुआ।


3. आधुनिक हिंदी का विकास और प्रमुख योगदान

आधुनिक हिंदी का विकास 19वीं सदी के उत्तरार्ध में तीव्र हुआ। खड़ी बोली हिंदी के विकास में तीन चरण प्रमुख हैं:

  • भारतेन्दु युग (1868–1900):
    भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एवं उनके समकालीन लेखकों (प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ आदि) ने हिंदी को सरल, स्वाभाविक एवं जनसुलभ रूप प्रदान किया।
  • द्विवेदी युग (1900–1920):
    महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में ‘सरस्वती’ पत्रिका ने हिंदी गद्य को वैज्ञानिक दृष्टि, स्थिरता एवं मानकीकरण प्रदान किया।
  • छायावाद युग (1920–1936):
    जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा जैसे छायावादी कवियों ने हिंदी साहित्य को नया सौंदर्य एवं गहराई प्रदान की।

4. स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी की भूमिका

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी भाषा राष्ट्रीय चेतना का माध्यम बनी। महात्मा गांधी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार पर बल दिया। हिंदी समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ (‘प्रताप’, ‘कर्मवीर’, ‘सरस्वती’, ‘सुधा’, ‘आज’) आदि के प्रकाशन ने राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ किया। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला।


5. स्वतंत्रता के पश्चात हिंदी का विकास

स्वतंत्र भारत में हिंदी के विकास हेतु सरकारी संस्थाएँ स्थापित की गईं, जिनमें केंद्रीय हिंदी संस्थान (1960), केंद्रीय हिंदी निदेशालय (1960), हिंदी अकादमियाँ, हिंदी विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। हिंदी का प्रयोग प्रशासन, शिक्षा, मीडिया, फिल्म और तकनीकी क्षेत्रों में व्यापक रूप से होने लगा।

आधुनिक तकनीकी दौर में इंटरनेट, सोशल मीडिया, डिजिटल माध्यम, और अनुवाद के क्षेत्र में हिंदी ने तेजी से विकास किया है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियाँ हिंदी के डिजिटल स्वरूप को विकसित कर रही हैं।


6. निष्कर्ष:

आज हिंदी भाषा की व्यापकता और लोकप्रियता पूरे विश्व में स्थापित हो चुकी है। भाषा का यह विकास अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से होते हुए वर्तमान स्वरूप तक पहुंचा है। यह निरंतर विकसित होती जा रही है और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाए हुए है। वर्तमान में हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है। इसका भविष्य तकनीकी नवाचार, अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साथ और भी उज्ज्वल प्रतीत होता है। हिंदी भाषा का निरंतर विकास इसे समृद्धि एवं विश्वव्यापी विस्तार की ओर ले जा रहा है।

अक्सर पूछे गए प्रश्न (FAQs):

Q1: हिंदी भाषा का उद्भव कैसे हुआ?
हिंदी भाषा का उद्भव संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश होते हुए शौरसेनी अपभ्रंश के माध्यम से हुआ।

Q2: हिंदी भाषा के विकास में कौन-कौन से काल आते हैं?
हिंदी भाषा का विकास प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक तीन मुख्य कालों में हुआ है।

Q3: हिंदी भाषा को राजभाषा कब घोषित किया गया?
14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।

Q4: हिंदी भाषा के प्रमुख साहित्यकार कौन हैं?
तुलसीदास, सूरदास, कबीर, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि प्रमुख हैं।

Q5: हिंदी भाषा का वर्तमान स्वरूप किस बोली पर आधारित है?
वर्तमान हिंदी भाषा खड़ी बोली पर आधारित है।

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