विद्यापति का श्रृंगार वर्णन- भारतीय साहित्य में श्रृंगार रस को प्रधान रस माना गया है। काव्यशास्त्र में श्रृंगार का महत्व सर्वोपरि है क्योंकि यह मानव के हृदय के कोमलतम भावों को उद्घाटित करता है। श्रृंगार रस का अर्थ होता है—प्रेम, सौंदर्य, यौवन और काम-भावना का मनोहर चित्रण। मैथिली भाषा के महान कवि विद्यापति भारतीय साहित्य में श्रृंगार रस के अप्रतिम कवि माने जाते हैं। विद्यापति के गीतों में प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है, जिसमें राधा-कृष्ण के दैवीय प्रेम के साथ-साथ लौकिक प्रेम की भी मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।
विद्यापति का परिचय
विद्यापति (1352–1448 ई.) मिथिला के प्रसिद्ध कवि हैं। उनका जन्म बिहार के दरभंगा क्षेत्र में हुआ था। वे संस्कृत, अवहट्ठ तथा मैथिली भाषाओं में रचनाएँ करते थे, परंतु उनकी प्रसिद्धि मैथिली भाषा के पदों के कारण ही है। विद्यापति को ‘मैथिल कोकिल’ कहा जाता है, क्योंकि उनके काव्य में कोयल जैसी मिठास है। विद्यापति के पद प्रेम के विविध रंगों से भरे हुए हैं।
विद्यापति की श्रृंगारिक दृष्टि का स्वरूप
विद्यापति का श्रृंगार वर्णन अत्यंत स्वाभाविक और मनमोहक है। उनके काव्य में प्रेम और सौंदर्य का जैसा सूक्ष्म और सहज चित्रण है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। वे केवल दैवीय प्रेम तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि मानवीय प्रेम की अनुभूतियों को भी अत्यंत गहराई से समझकर उन्हें काव्य में व्यक्त किया। उनका श्रृंगार वर्णन स्थूल नहीं, बल्कि हृदय की कोमल अनुभूतियों का सूक्ष्म विश्लेषण है। विद्यापति के श्रृंगार वर्णन में प्रेम की पीड़ा, विरह-वेदना, मिलन की आकुलता तथा यौवन के मोहक आकर्षणों का यथार्थ चित्रण मिलता है।
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भारतीय श्रृंगार काव्य की परंपरा के अनुसार विद्यापति ने भी नायक-नायिका भेद का सुंदर चित्रण किया है। उनके काव्य में कृष्ण मुख्य नायक हैं और राधा मुख्य नायिका। विद्यापति ने कृष्ण की शोभा, सौंदर्य और मोहिनी मूरत का चित्रण ऐसे किया है मानो कृष्ण स्वयं प्रेम का मूर्तिमान रूप हों। विद्यापति की नायिका—राधा सुंदरी, चंचल, प्रणय-प्रवीणा और प्रेमिका के समस्त गुणों से युक्त है। राधा के प्रेम, ईर्ष्या, मान, विरह और समर्पण की अनुभूतियाँ विद्यापति ने बेहद गहराई और स्वाभाविकता के साथ व्यक्त की हैं।
विद्यापति की नख-शिख वर्णन शैली
श्रृंगार के वर्णन में विद्यापति की नख-शिख वर्णन शैली अद्भुत है। इसमें नायिका के पैरों के नखों से लेकर सिर के केश तक के अंगों का अत्यंत सूक्ष्म, सौंदर्यपूर्ण और मोहक वर्णन होता है। विद्यापति ने राधा की शोभा का वर्णन इतने प्राकृतिक एवं मार्मिक ढंग से किया है कि पाठक मंत्रमुग्ध हो जाता है। नायिका के वक्षस्थल, कटि प्रदेश, कमर, नाभि, मुख, नेत्र, होंठ, मुस्कान, हँसी और चाल तक का चित्रण विद्यापति के पदों में ऐसा मिलता है जैसे यह कोई देवताओं द्वारा निर्मित स्वर्गीय सौंदर्य हो।
उदाहरणस्वरूप यह पद देखें:
“सखि हे, की कहब सुनि-सुनि काने।
स्यामसुन्दर मोहि बिहँसि अपनायो,
अधर सुधा रस साने।”
यहाँ कृष्ण के अधरों से सुधा-रस सने होने का वर्णन है, जो श्रृंगार के चरम आनंद को अभिव्यक्त करता है।
ऋतु वर्णन में श्रृंगार
विद्यापति के पदों में ऋतु वर्णन अत्यंत रमणीय है। बसंत और वर्षा ऋतु विद्यापति के काव्य में श्रृंगार को प्रबल करते हैं। ऋतु परिवर्तन का मानव मन पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका सूक्ष्म चित्रण विद्यापति के काव्य में स्पष्ट दिखता है। वर्षा ऋतु का आगमन नायिका की विरह-वेदना को बढ़ाता है, तो बसंत ऋतु मिलन की आशाओं और उमंगों को जागृत करता है। विद्यापति के शब्दों में:
“आएल ऋतुपति राज बसंत।
पिक कर बोल मधुर रसाल,
माधव गति भयंत।”
इस प्रकार ऋतु वर्णन में भी श्रृंगारिक छटा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
विरह वर्णन में श्रृंगार
विद्यापति के पदों में विरह वर्णन बहुत मार्मिक है। वे नायिका की विरह वेदना का अत्यंत मार्मिक चित्रण करते हैं। नायिका की व्याकुलता, पीड़ा, निराशा और प्रिय के बिना जीवन के अर्थहीन होने का भाव गहराई से व्यक्त होता है। एक विरह वर्णन देखें:
“माधव, हम परिजन विरह-विथा,
सूखल तन, मन जलल सीथा।
नहि रहल जीव,
नहि रहल चेत,
केहेन सखि कहब एहि वेत।”
यह पद विरह की पीड़ा को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।
संयोग श्रृंगार वर्णन
संयोग अर्थात् मिलन की अनुभूति का वर्णन भी विद्यापति के काव्य में मनमोहक और सुखद है। मिलन के समय का आनंद, नायक-नायिका के मन के उल्लास, हर्ष और संकोचपूर्ण रोमांच का चित्रण अत्यंत स्वाभाविक है। विद्यापति लिखते हैं:
“माधव मिलन भेल सुख भारी,
तन मन सुधि हरि निहारी।”
इस पद में मिलन का आनंद चरम उत्कर्ष पर है।
लौकिक एवं आध्यात्मिक प्रेम का सामंजस्य
विद्यापति ने लौकिक प्रेम के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रेम को भी सहजता से जोड़ा है। राधा-कृष्ण के प्रेम में उन्होंने लोक और परलोक के प्रेम का अद्भुत सामंजस्य दिखाया है। राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम मानवीय स्तर पर रहते हुए भी ईश्वरीय प्रेम का रूप ले लेता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार विद्यापति के काव्य में श्रृंगार रस अत्यंत व्यापक, गहन और मार्मिक है। उनकी भाषा, शैली और सौंदर्यबोध में प्रेम की सहज अनुभूति है। विद्यापति का श्रृंगार वर्णन अपने समय की सामाजिक-सांस्कृतिक भावभूमि का प्रतिनिधित्व करता हुआ भी सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक बन जाता है। इसीलिए विद्यापति भारतीय श्रृंगार काव्य के अमर हस्ताक्षर हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
- विद्यापति के काव्य में श्रृंगार रस का महत्व क्या है?
विद्यापति के काव्य में श्रृंगार रस प्रेम, सौंदर्य और मानवीय भावनाओं को गहराई से प्रकट करता है, जिससे उनका काव्य अत्यंत लोकप्रिय है। - विद्यापति के काव्य में नायक-नायिका कौन हैं?
विद्यापति के काव्य के प्रमुख नायक कृष्ण हैं और नायिका राधा हैं। - विद्यापति के नख-शिख वर्णन की विशेषता क्या है?
विद्यापति के नख-शिख वर्णन में नायिका के सौंदर्य का सूक्ष्म, विस्तारपूर्वक और प्राकृतिक चित्रण मिलता है। - विद्यापति के विरह वर्णन की प्रमुख विशेषता क्या है?
विद्यापति विरह में नायिका के हृदय की पीड़ा, व्याकुलता और विरह-वेदना का गहराई से चित्रण करते हैं।Read Also:विद्यापति की भक्ति भावना
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