Maharashtra

महाराष्ट्र स्कूल में पीरियड्स जांच के नाम पर बच्चियों के कपड़े उतरवाए जाने की शर्मनाक घटना

प्रिंसिपल हिरासत में, देशभर में आक्रोश


घटना का विवरण

महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले में स्थित एक आश्रमशाला (आदिवासी आवासीय स्कूल) से मानवता को शर्मसार कर देने वाली खबर सामने आई है। यहां कक्षा 5वीं से 10वीं तक की पढ़ाई कर रहीं कई छात्राओं को पीरियड्स जांच (माहवारी) की जांच के नाम पर कपड़े उतरवाने के लिए मजबूर किया गया।
इस घिनौनी हरकत के चलते स्कूल की प्रिंसिपल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। मामला सामने आते ही स्थानीय प्रशासन और महिला आयोग हरकत में आ गया है।


क्या हुआ था?

सूत्रों के अनुसार, स्कूल में यह पीरियड्स जांच यह देखने के लिए की गई कि छात्राएं माहवारी के दौरान परिसर में रह रही हैं या नहीं।
आश्रमशालाओं में एक ‘अनलिखित नियम’ यह माना जाता रहा है कि जब छात्राओं को पीरियड्स होते हैं, तो उन्हें अलग कमरे में रहना चाहिए और सामान्य दिनचर्या से दूर रखा जाना चाहिए। इसी नियम का पालन करवाने के लिए कथित रूप से यह ‘पीरियड्स जांच’ की गई।

[news_related_post]

बताया जा रहा है कि कम से कम 30 बच्चियों को अलग-अलग कमरे में ले जाकर उनकी अंडरवियर चेक की गई, और यह देखने की कोशिश की गई कि किसी को पीरियड्स तो नहीं हैं। यह सब उनकी मर्जी के खिलाफ किया गया और उनके आत्मसम्मान को बुरी तरह से कुचला गया।


पीरियड्स जांच

छात्राओं की शिकायत पर सामने आया मामला

यह मामला तब उजागर हुआ जब कुछ बहादुर छात्राओं ने इसकी जानकारी अपने माता-पिता को दी। परिजनों ने तुरंत प्रशासन से शिकायत की, जिसके बाद मामले की जांच शुरू हुई। स्थानीय पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए स्कूल की प्रिंसिपल और कुछ महिला कर्मचारियों को हिरासत में लिया है।


प्रशासन और महिला आयोग की प्रतिक्रिया

घटना के बाद महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग ने सख्त कार्रवाई की मांग की है। आयोग की अध्यक्ष ने बयान जारी कर कहा:

“यह पूरी तरह से अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार है। बच्चियों के साथ इस तरह की हरकत न केवल उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि कानूनन भी गलत है। दोषियों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।”

महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री ने भी घटना की निंदा करते हुए जांच के आदेश दिए हैं और कहा कि यदि स्कूल प्रशासन दोषी पाया गया, तो संबंधित लाइसेंस रद्द किया जाएगा।


मानवाधिकार और किशोर मनोविज्ञान का उल्लंघन

इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या मासिक धर्म अब भी इतना बड़ा taboo है कि बच्चियों की निजता तक का उल्लंघन जायज़ ठहराया जाए?

बाल मनोविज्ञानी बताते हैं कि किशोरावस्था में ऐसे अनुभव उनके मानसिक विकास पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
“बिना सहमति के पीरियड्स जांच के लिए कपड़े उतरवाना, खासकर पीरियड्स के दौरान, शारीरिक ही नहीं, मानसिक शोषण भी है।”

More news:https://newzwala.com/%e0%a4%85%e0%a4%ac-%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%80-%e0%a4%b0/


मासिक धर्म: एक जैविक प्रक्रिया, न कि अपराध

मासिक धर्म एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है जिसे लेकर समाज में आज भी अनगिनत भ्रांतियां और वर्जनाएं जुड़ी हुई हैं। कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इसे ‘अशुद्धता’ से जोड़ा जाता है।
बच्चियों को पीरियड्स के दौरान कमरे में बंद करना, उनसे दूरी बनाना, उन्हें सामान्य गतिविधियों से रोकना — ये सब आज भी होता है।

सरकार और NGOs द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि ज़मीनी हकीकत अभी बहुत पीछे है।


क्या होना चाहिए आगे?

  1. सख्त कानूनी कार्रवाई — दोषियों पर POSCO और महिला सुरक्षा अधिनियमों के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
  2. स्कूलों में पीरियड्स एजुकेशन अनिवार्य की जाए — लड़के-लड़कियों दोनों को जागरूक करना ज़रूरी है।
  3. स्कूल स्टाफ को संवेदनशीलता प्रशिक्षण मिले — ताकि वे बच्चों की निजता और सम्मान का महत्व समझ सकें।
  4. माता-पिता और समुदाय की भागीदारी बढ़े — ताकि बच्चे बिना डर के शिकायत कर सकें।

Watch:https://www.youtube.com/watch?v=XBcWF73eg3w


निष्कर्ष

यह घटना न केवल महाराष्ट्र या किसी स्कूल तक सीमित नहीं है — यह एक समाजिक सोच का आइना है, जो आज भी पीरियड्स को गुप्त, शर्मनाक और अपवित्र मानता है।
बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं उन्हें डर और संकोच के घेरे में डाल देती हैं, जबकि उन्हें समझ, समर्थन और सुरक्षा की ज़रूरत होती है।

अब समय है कि हम केवल नाराज न हों, बल्कि उस सोच को बदलें जो पीरियड्स को अपराध मानती है।


आपकी राय क्या है? क्या आपने कभी ऐसी घटनाओं के बारे में सुना है? क्या आपके इलाके में इस विषय पर जागरूकता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *